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________________ २८६ AAAAAAN पाण्डव-पुराण | AAA ~MMA wumn wwwwwwwwwwwww wwww www 220 Ped 1 An देवतोंने पूजा की थी; और मन्दोदरी, मदनमंजूषा आदिकी भी इसीके द्वारा इतनी प्रतिष्ठा हुई । तुम सच करके मानो कि संसार में स्त्रियोंकी शोभा शीलसे ही होती है । यह शील ऐसी कला है कि इसके होते हुए जीवों में और और गुण स्वयं आ जाते हैं । इसीसे जीवोंको सब सम्पत्ति मिलती है । सच पूछो तो संसारमें शीलके सिवा कोई उत्तम पदार्थ नहीं है, न हुआ और न होगा । इस समय अर्जुन भी वहीं द्रोपदीकी दुःख भरी वातको सुन रहा था । उसकी ऐसी अवस्थाको न सह सकने के कारण उसे बड़ा क्रोध आया और वह वह सिंहकी नॉई गर्ज कर उठ खड़ा हुआ । परन्तु उसे युधिष्ठिरने यह कह कर "रोक लिया कि अभी कुछ दिन ठहरो, वाद जो जीमें आवे, करना । धीरे धीरे सूरज अस्त हुआ, और शतका आगमन हुआ । इस समय द्रोपदी नेत्रोंमें ऑस भरे हुए युधिष्ठिर के पाससे भीमके पास गई और लज्जा से खेद - खिन्न हो बोली कि आप जैसे महावली के रहते यह नीच कीचक दुष्ट मेरी ऐसी बुरी हालत करे, अधिक और क्या लज्जाकी बात हो सकती है । यह सुनते ही हाथी की सूँड़ जैसी मजबूत भुजावाले उस वीरने कहा कि भ्रातृजाये, कहो, उस दुष्टने तुम्हें क्या दुःख दिये हैं । उस दुष्टका तिरस्कार करके मैं उसे अभी यमालय भेज सकता हूँ । बोलो क्या कहती हो । तुम्हारा तिरस्कार मैं नहीं सह सकता । इस पर पांचालीने कहा कि महाभाग सिंह जैसे पराक्रमी आपके रहते मुझे दुःख तो दे ही कौन सस्ता इससे | परन्तु मुझे अपने इस अपमानका बड़ा ही दुःख है कि दुष्ट कीकचने मेरा हाथ पकड़ लिया और मुझसे अपनी नीच वासना प्रकट की । आप मेरे इसी अपमानका बदला लीजिए । मभो, मुझे बड़ा दुःख हो रहा है । देखिए उसके करस्पर्शसे मेरा शरीर अब तक भी थर थर कॉप रहा है । यह सुनते ही भीम दावानलकी भाँति क्रोध से लाल हो उठा और कीचकको मार डालनेके लिए तैयार होकर उसने कहा कि सती, इसके लिए एक उपाय करो। वह यह कि तुम जाकर उससे दूसरे दिन रातमें वनमें आनेके लिए संकेत कर आओ, पर इस बातका ख्याल रखना कि वह जगह ऐसी हो जहाँ कि मनुष्योंका संचार न हो । इसके बाद द्रोपदी भीमके कहे अनुसार कीचकके पास गई और उसने कामसे पीड़ित हुए उस कपटीसे कहा कि मैं आपको चाहती हूँ । अत एव जो जगह आपको रुचे आप वहीं आ जानेके लिए मुझे संकेत बताइए । मैं वहीं 'आ
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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