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________________ अठारहवाँ अध्याय । २८५ वे मेरा कुछ भी नहीं कर सकते । मेरे पास अनेकानेक हाथी-घोड़ों आदिकी सेना है। मेरे पास इतनी शक्ति है कि मै चाहूँ तो जवरदस्ती लेकर तुम्हें भोग सकें। पर नहीं, मैं ऐसा करना ठीक नहीं समझता; अपनी प्यारीको कष्ट देना नहीं चाहता । सुन्दरी, अव विलम्ब मत करो । देखो मैं बड़ा दुःखी हो रहा हूँ, अतः कृपा करके मेरे इस दुःखका इलाज करो, प्रसन्न हो । प्यारी, अब मै तुम्हारे साथ रमनेके सिवा अपने जीनेका और कोई उपाय नहीं पाता हूँ। अतः जैसे उचित समझो, मेरी रक्षा करो। उसकी इस नीचताका वह शीलवती कुछ उत्तर न देकर चली गई। इधर कीचक भी कामके शरोंकी मारसे मुर्दे जैसा होकर पड़ रहा। इसके बाद एक समय किसी एक शून्य मकानमें उस दुष्टने द्रोपदीका हाथ पकड़ लिया और उससे बोला कि देवी, बस, अब तुम मुझे सुखी करो, मै मरा जा रहा हूँ। यह देख द्रोपदी भारी आपत्तिमें फँस गई । उसके ऊपर मानों वज्रपात हुआ। परन्तु फिर भी हिम्मत बॉध कर उस वीर नारीने उस , दुष्टके हाथसे उस समय भी छुटकारा पा लिया । इसके बाद वह रोती हुई युधिष्ठिरके पास आई। वहाँ आकर उसने उस दुष्टके सारे दुष्कृत्यको युधिष्ठिरसे कहा और वह बोली कि हे देव, ऐसी विषम अवस्थामें भी जो मैंने आपके प्रभावसे अपने शीलरत्नको वचा पाया यह मेरे लिए बड़े सौभाग्यकी वात है । द्रोपदीकी इन वातोंको सुनते ही युधिष्ठिरकी क्रोधसे भौहें चढ गई और उन्होंने कहा कि हाय, जहाँ राजा भी इतना दुराचारी है वहॉकी प्रजाके दुराचारका तो फिर ठिकाना ही क्या है ! विद्वानोंने ठीक कहा है कि-- राशि धर्मिणि धर्मिष्ठाः, पापे पापाः समे समा॥ राजानमनुवर्तन्ते यथा राजा तथा प्रजा ॥ अर्थात्---जैसा राजा होता है वैसी ही मजा होती है । राजा धर्मात्मा हो तो प्रजा भी धर्मात्मा होती है और राजा पापी हो तो प्रजा भी पापी होती है। तात्पर्य यह कि जैसा राजा होगा वैसी ही प्रजा भी होगी; क्योंकि प्रजा राजाकी नकल करती है। इसके बाद उन्होंने घबराई हुई द्रोपदीको ढाढस बंधाया और कहा कि सुशीले, तुम बड़ी वीर नारी हो जो तुमने स्वयं शीलकी रक्षा की। तुम अब कुछ भी चिन्ताभय न करो । क्या तुम्हें मालूम नहीं है कि शील-सम्पत्तिके बलसे ही सीताकी
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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