________________
अठारहवाँ अध्याय ।
२८३
NM
धर्मकी आराधना की थी उसके प्रभावसे अवधिज्ञान द्वारा तुम्हारे भावी उपसर्गको जान कर उसे दूर करनेके लिए मैं आया हूँ।
मैंने यहॉ आकर वज्र पापके जैसी कृत्या विद्याको चारण किया जो कि तुम्हारा सर्वनाश करनेके लिए कनकध्वजकी भेजी हुई यहॉ आई थी। मैंने सब बातें जान कर उसे ऐसी सम्मति दी कि जिससे उसने जाकर कनकध्वनको ही भस्म कर दिया । यह सब वृत्तान्त कह कर, पार्थको द्रोपदी सौंप कर और उनके चरण-कमलोंको नमस्कार कर वह धर्मदेव अपने स्थानको चला गया।
इसके बाद वहाँसे चल कर पांडव मेघदलपुरमें आये । यहाँका स्वामी सिंह राजा बहुत प्रसिद्ध था । उसकी रानीका नाम कांचनामा था। वह वास्तवमें कंचनके जैसी आभावाली थी और सच पूछो तो इसी कारण से ही कांचनामा उसका नाम पड़ा था। सिंह और कांचनाभाके एक पुत्री थी, जो रूप सौन्दर्य-सम्पन्न थी। उसका नाम कनकमेखला था। वह इन्द्रकी इन्द्राणी' जैसी थी। सबको वह बड़ी प्यारी थी। बड़े भाईकी आज्ञासे राजाकी दी हुई उस राज-कन्याका भीमने पाणिग्रहण किया। ____ इसके बाद पांडव बहुत दिनों तक वहीं रहे और उन्होंने कोशल देशको खूब देखा । वाद वहाँसे भी चल कर धीरे धीरे वे रामगिरि पहाड़ पर आये । यहाँसे धूमते हुए वे सुन्दर विराट नगरमें पहुंचे । वहॉ आकर उन्होंने विचार किया कि हमारे पूरे बारह वर्ष तो वनमें वनेचरोंकी नॉई बीत गये । अब एक वर्ष
और है जो अधिक मासका है । अतः एक साल भेष बदल, छिपे रह कर यही बिताना चाहिए। इस निश्चयके अनुसार युधिष्ठिरने कहा कि मैं भोजन पकानेवाला रसोइया बनूंगा। अर्जुनने कहा कि मैं नाटककी नायिका बनूंगा, उत्तम नृत्य करना सिखाऊँगा और साड़ी तथा चोली पहिन कर रहूँगा । अपना नाम मैं रक्खूगा बृहनला। नकुलने कहा कि मैं घोड़ों की रक्षा परे रहूँगा और धीर-चित्त सहदेवने कहा कि मैं धन-धान्यको वढानेवाले गोधनकी रक्षा करूंगा। एवं द्रोपदीने भी कहा कि मैं उत्तम माला गूंथनेवाली मालिन वनूंगी। ___इस प्रकार सब बातें ध्यानमें रख कर उन्होंने अपना अपना वेष बदला और मैले कपडे पहिन कर कपट-घेषसे वे राजमन्दिर गये । राजमन्दिर देखने में बड़ा सुंदर और आनंद देनेवाला था । वहॉका राजा विराट था । उसने शत्रु-समूहका दमन कर बहुतसे राजोंको नमा दिया था-वह बहुतसे राजों द्वारा