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________________ ' अठारहवाँ अध्याय । २८१ बोला कि जिस दुष्टने मेरे इन परम प्यारे भाइयोंके प्राण लिये है उसको यदि मैं देख पाता तो कभी न छोड़ता । अपने हाथोंके वज्र जैसे महारसे उसे गतप्राण कर दिशाओं की बलि चढ़ा देता । भीमके गर्व-युक्त वचनों को सुन कर आकाशमें ठहरा हुआ वह देव बोला कि सुनिए, आप चाहे अपने मुँह मियामिट्ट भले ही वनें, पर मैं तो उसीको निरंकुश शक्तिवाला मानूँगा जो निर्मय हुआ मेरे इस तालाब में जाकर पानी पियेगा । MAAAAAAAA देव कहने के साथ ही भीम तालाव पर गया और उसने निर्भय हो स्नान कर उसका पानी पिया | इसके बाद ज्यों ही वह महा चली बाहिर आकर बैठा कि उसे भी उसी वक्त मूर्च्छा आ गई और वह एकदम बेहोश हो गया । अ खिर अन्य भाइयोंकी भाँति उसे भी पृथ्वी की गोद में लेट जाना पड़ा । सच है कि बड़े बड़े महात्मा भी अपने ऊपर आनेवाले अनिष्टों को नहीं जान पाते हैं । उधर जब समय बहुत वीत गया और भीम भी पीछा न लौटा तब युधिष्ठिरको बड़ी चिन्ताने घेरा । उनका मुॅह फीका पड़ गया । वह मन-ही-मन सोचने लगे कि इतना समय बीत गया और अब तक भी बन्धु-गण पीछे नहीं आये । मालूम नहीं क्या हुआ । जाकर देखूँ कि क्यों नहीं आये । इसके बाद वह उठे और वनको देखते हुए वहीं पहुँचे । वहाँ उन सबको मूर्च्छित देख कर उन्हें भी मूर्च्छा आ गई । इसके बाद जब वे सुधमें आये तव विलाप करने लगे कि वन्धु-गंण, जान पड़ता है आप लोग इस तालाब के पानीसे मूच्छित हो गये हैं। खेद है कि सड़ी चीजोंमें लग जानेवाला घुन इन वज्र कैसे खंभों में कैसे लग गया । हाय ! आज यहाँ पांडव-कुलका सर्वनाश हो गया । अब दुष्ट और के भंडार दुर्योधनकी खूब बन पड़ेगी । वह सारे राज्यका अधीश्वर वन कर मनकी मुराद पूरी कर लेगा । उस दुष्टको अन्यायके रोकनेवाला अब कोई नहीं रह गया है । जब उस दुष्टको क्रुद्ध हुए योधाओंने युद्धमें बाँध लिया था तव दैवके हाथ से मैंने ही उसे छुड़ाया था, उसे मारने नहीं दिया था । परन्तु हाय ! उसी दैवने अब मेरे ही प्यारे भाइयोंको मार डाला है । सुझमें उस दुष्ट दैवको भी हतप्रभ करने की शक्ति है और उसीका यह फल था जो मैंने उस वक्त उन मत्तोंके हाथसे कौरवोंको मौतेसे बचा लिया था । परन्तु फिर भी दुष्ट दैवको भय न लगा और उसने मेरे ही साथ ऐसा व्यवहार किया । दैवके प्रति यह उलाहना सुन वह देव बोला कि धर्मराज, तुम्हारे इन प्रचंड धनुषधारी बान्धवोंको मैंने ही अपने प्रभाव से इस अवस्थाको पहुँचाया है । इसमें पाण्डव-पुराण ३६
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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