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________________ २८० VAN in mnara जब उसका हृदय कुछ शांत हुआ तब क्रोधमें आ उसने अपने भयावने स्वरसे सारी दिशाओंको क्षोभित करते हुए कहा कि जिस किसी दुष्टात्माने मेरे इन परम प्यारे भाइयोंको मारा है मै उस दुष्टको अभी ही यम-मन्दिरका अतिथि नाये देता हूँ । nan MA पाण्डव-पुराणं । A647 AAAAA Mam^^^^^^^.N अर्जुनकी इस विभीषिकाको सुनते ही साक्षात धर्म-रूप और निर्भय उस देवने, जैसे कोई शत्रु से कहता है वैसे ही छिपे छिपे, अर्जुन से कहा कि वीर पार्थ, तुम्हारे इन दोनों योग्य भाइयोंको, सच कहता हूँ कि मैंने ही मारा है और तुमसे भी कहता हूँ यदि तुममें कुछ ताकत हो तो तुम भी मेरा एक कहना कर देखो। तुम थोड़ी देरके लिए अपने क्राधको तो छोड़ दो और अपनी प्यास बुझाने के लिए मेरे इस तालावका थोडासा पानी पी देखो । देवकी ऐसी आश्चर्य-पूर्ण बात सुन कर क्रोधमें भूल अर्जुनने भी उस तालावका पानी पी लिया और इसके थोड़े ही समय में वह भी उस विषैले जलसे बेसुध हो चक्कर खाकर जमीन पर गिर पड़ा । 7 उधर जब बहुत काल तक पार्थ भी वापिस न लौटा तव खेदित होकर युधिष्ठिरने भीमसे कहा कि भाई, मालूम नहीं पड़ता कि अर्जुनको भी इतना विलम्ब क्यों लगा ।' तुम जल्दी जाकर वह जहाँ हो उसे खोजो । युधिष्ठिरकी आज्ञा पाकर जगतको प्रसन्न करनेवाला भीम उसी वक्त वहाँसे चल कर अपने पाद - प्रहार से जमीनको कंपित करता हुआ वहीं जा पहुँचा जहाँ वे तीनों ही बेसुध पड़े थे । भी उनकी मृतक जैसी दशा देख कर बड़ा दुःखी करने लगा | उनकी वह दुःख-मय अवस्था न सह सकने के टूट सा गया । वह दैवको उलहना देने लगा कि राक्षस, तूने यह क्या अनिष्ट उपस्थित कर दिया है ! आज यह जान पड़ता है मानों मेरे भाई ही नहीं मरे; किन्तु समस्त लोक ही नष्ट हो गया ! - दुष्ट, अब तू ही बता कि इन्हें छोड़ करें हम कहाँ जायें, कहाँ रहें, किससे बातें करें और कहाँ अब इन प्यारे सहोदरोंको देखें ! इस प्रकार विलाप करता हुआ महाभट भीम दुःखके मारे मूच्छित हो कर पृथ्वी की गोद में लेट गया; जैसे कि काट दिया गया पेड़ क्रिया- विहीन हो करें जमीन पर गिर पड़ता है । इसके वाद जब वह ठंडी हवाके स्पर्शसे कुछ सचेत हुआ तब उठ कर चकितकी भाँति सब दिशाओंकी ओर देखने लगा और हुआ और विलाप कारण उसका दिल
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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