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________________ 4 अठारहवाँ अध्याय | २७९ पर एक क्षण भी नहीं टिक सकता । इसके बाद उस विशुद्धात्माने द्रोपदी सतीको हर लिया । उसके द्वारा द्रोपदी को हरी गई देख कर पांडवोंको बड़ा भारी क्रोध ● आया और वे उसे मारने को उसके पीछे भागे । उनके साथ ही नकुल और सहदेव क्रोधित हो उसके पीछे वेग से यह कहते हुए दौड़े कि दुष्ट तू द्रोपदी सतीको हर कर कहाँ जायगा । अब तू अपने आपको मरा हुआ ही समझ । काहेको इधर उधर भागता फिरता है । निश्चय समझ कि हम तुझे अब जीता न छोड़ेंगे। इसके बाद पांचाली सहित वह जहाँ जहाँ भागता गया नकुल और सहदेव भी वहीं वहीं उसके पीछे पीछे भागे गये । भागते भागते वे दोनों भाई एक निर्जल वनमें आ गये । उन्हें प्यासकी बड़ी पीड़ा हो रही थी। वे जलकी खोजमें उस वनमें इधर उधर घूमने लगे | इतने हीमें एक ओर उस देवका निर्माण किया हुआ तालाब उन्हें दिखाई पड़ा जो जलकी कल्लोलोंसे व्याप्त था, कमलोंसे भरपूर था । उसको देख कर वे पवित्र आत्मा दोनों भाई पानी पीनेके लिए उस पर गये और उसका पानी पीनेके साथ ही वे जमीन पर गिर कर मूच्छित हो गये; जैसे कि विषैले जलको पीकर मनुष्य सुध-बुध-रहित हो जाते हैं। बड़ी देर तक उन्हें वापिस लौटे न देख कर अर्जुन दुखित हो बोला, हाय ! मेरे प्यारे भाई कहाँ चले गये ? उन्हें अति शीघ्र ही लौट आना चाहिए था सो इतना काल बीत गया तब भी वे वापिस नहीं आये; न जाने कहाँ चले गये । www M^^^^^n nam AAAAAAA इतनेमें एक मनुष्यने आकर उनकी जो हालत हुई थी, वह सारीकी सारी अर्जुनसे कह सुनाई । सुन कर धनंजय फिर एक क्षण भर भी न ठहरा और वह युधिष्ठिरको प्रणाम कर अति शीघ्र ही उन्हें देखने के लिए निकला। थोडी देर में वह उसी तालाब पर पहुँचा जहाँ दोनों मूच्छित पड़े हुए थे । उन्हें उस तालाव के किनारे मरे हुएकी भाँति वेहोश पड़े देख कर उसे बड़ा भारी विषाद हुआ । वह शोकसागर में डूब गया । उसका मुॅह मलिन हो कर मुरझा गया । उसकी आँखों से आँसुओं की धारा बह निकली। और आखिर उसका धीरज छूट गया । वह अतीव कातर हो विलाप करने लगा कि हाय ! ये कौन हैं ? क्या आकाशसे पृथ्वी पर सूरज और चॉद ही तो नहीं आ पड़े हैं; या महायुद्ध के समय युधिष्ठिरकी दोनो भुजायें भग्न हो कर तो नहीं गिरी हैं । देखो, ये कैसी हालत में पड़े हुए हैं । इन्हें देख कर तो मेरा हृदय ही फटा जाता है; वह बिल्कुल धीरज ही नहीं धरता । हाय ! मैं यहाँसे जाकर इनके सम्बन्धमें बड़े भाईको क्या उत्तर दूँगा । इस प्रकार अर्जुनने बड़ा विलाप किया ।
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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