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________________ २७६ पाण्डव-पुराण। nomwwwn ummmmm एक सा रहता है । देखो, जिस तरह राहुके द्वारा ग्रसे जाने पर भी चंद्रमा अपनी उज्ज्वलताको नहीं छोड़ता उसी तरह महान पुरुष भी दुर्जनोंके द्वारा कष्ट दिये जाने पर भी विकार भावको नहीं प्राप्त होते । इसके बाद धर्मपुत्र युधिष्ठिरने पार्थसे कहा कि भाई, इसी समय दुर्योधनको छोड़ देनेका यत्न करो, जिससे संसारमें पांडवोंकी ऐसी अपकीर्ति न उड़ने पावे कि उन्होंने अपने कुटुम्बीके साथ ही ऐसा खोटा व्यवहार किया । तुम शीघ्र जाओ और वह मर न जाय इसके पहले ही छुड़ा कर उसे यहाँ ले आओ । उसके मर जानेसे पांडवोंकी भारी अपकीर्ति होगी । युधिष्ठिरके उचन शिरोधार्य कर अर्जुन उसी वक्त रथ पर सवार हो कर दौड़ा गया और गंधर्वके पास पहुँच कर उससे उसने कहा कि दुर्योधनको यहीं और अभी छोड़ दो, इसे न ले जाओ। यह सुन कर गंधर्वने अपने वीर्यको प्रगट करते हुए अर्जुनसे कहा कि हम इसे नहीं छोड़ेंगे । यदि तुममें ताकत हो तो अपनी अपूर्व धनुष-विद्याके बल पर छुड़ा लो। ___यह देख अर्जुनका एक शिष्य उससे विमुख हो, रथमें सवार हो कर उसीकी ओर दौड़ा। तब क्रोधमें आकर पार्थने शिष्यके साथ खूब युद्ध किया और देखते देखते बाणोंकी पंक्तिसे सारे आकाश-मंडलको ढक दिया । यह देख शत्रु विद्याधरने यह कह कर कि आपके धनुर्वेदको देखता हूँ, हॅसते हॅसते अपने बाणोंसे धनंजयको ही प्रच्छन्न कर दिया । .. - इसके बाद चित्रांगद भी रथमें सवार होकर युद्धके लिए उठा और अपने रथको लेकर अर्जुनकी और आया। उसे देख यह जान पड़ता था मानों वह अर्जुनके साथ महती क्रीड़ा करनेको ही आ रहा है। । __' इस समय चित्रांगदने अर्जुनके ऊपर जो जो बाण चलाये उन्हें ,अर्जुनने मेघोंको नष्ट करनेवाले वायुकी भाँति बिल्कुल नष्ट कर दिया । तब.वे क्रोधसे लाल होकर दोनों ही धनुर्धर दिव्य हथियारोंके द्वारा भीषण युद्ध करने लगे, जिसको देख कर डरपोकोंको अपने प्राणोंकी ही आ पड़ती थी। यह देख चित्रांगदने दावानल वाण छोड़ा जिसको कि पार्थने जलद बाणसे वारण कर दिया। बाद चित्रांदगने वायुवाणके द्वारा जब पार्थके जलदको छेद दिया तब धनंजयने वाड़व-बाणसे उसके सर्वहारी वायुवाणको नष्ट कर दिया । तब चित्रांगदने नागपाश बाणको छोड़ा, जिसे कि धजयने गरुड़ वाणसे वारण कर दिया । तात्पर्य यह है कि
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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