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________________ अठारहवाँ अध्याय । २७५ > उधर दुर्योधनकी स्त्री भानुमतीने ज्यों ही उसके पकड़े जानेकी खबर सुनी त्यों ही वह रोती हुई वहाँ आई । वह शोक-संताप में बिल्कुल ही डूब रही थी और ऑसुओंकी अविरल धारासे पृथ्वीतलको सींच रही थी । वह चित्रांगद आदिके पास आकर रोती हुई उनसे बोली कि हे वीरगण, आप लोग एक दूसरेके मुॅहकी ओर ताकते हुए क्या बैठे हैं। बताइए कि आप लोगोंने जो मेरे स्वामीको बाँध लिया है इससे आपको क्या सुख और लाभ होगा । अत एव अच्छा हो यदि कौरवोंके अधीश्वर मेरे पतिदेवको आप छोड़ दें; अन्यथा आप लोगोंकी बड़ी अपकीर्ति होगी । और ऐसी हालतमें आप लोग कैसे शान्ति लाभ करेंगे और कौन आप लोगों को अच्छा कहेगा । भानुमतो इस तरह विलाप करती हुई देख कर भीष्म पितामह ने उसे आश्वासन दिया और कहा कि कृपापात्रे, तू क्यों इतनी घबरा रही है, और क्यों हर एकके पास जा जा कर रोती है । देख, यदि तुझे अपने पतिको छुड़ाना ही है तो तू मेरा कहना मान और युधिष्ठिरकी शरण में जा । वे तेरे दुरात्मा पतिको बंधन से तुरंत छुटकारा दे देंगे । यद्यपि युधिष्ठिर के साथ तेरे पति दुर्योधनने बड़ा भारी अन्याय किया है; परन्तु फिर भी वह धर्म- बुद्धि है, अतः अपराधी कौरव राजोंको वह अवश्य क्षमा कर देगा । वह धीर सव राजको आपत्ति से छुटकारा दिलाने के लिए समर्थ है । वह अपने दयालु स्वभावको कभी नहीं छोड़ता, अतः मुझे आशा तथा विश्वास है कि वह अवश्य ही दुर्योधनको छोड़ देगा। I पितामहकी बात मान कर भानुमती वहीं गई जहाँ अपने बन्धुवर्गके साथ युधिष्ठिर बैठे हुए थे । वहाँ पहुँच कर वह बोली कि दयाधीश, शान्त-चित्तं और विवेकी राजन्, आप हम लोगोंके सब अपराधोंको भूल जाइए और सब सुखोंकी देनेवाली मुझे पतिकी भीख दया करके दीजिए । उधर गंधर्व विद्याधर दुर्योधनको बॉध कर और रथमें बैठा कर इन्द्रपुरीके जैसी अपनी नगरीको ले गया। इस समाचारको सुन भीम बोला कि दुर्योधन पकड़ा गया यह अच्छा ही हुआ । इसमें शोक करनेकी बात ही क्या है । जिसका वध मुझे या तुम्हें करना था वह दूसरे के द्वारा हो गया। यह तो खुशीकी बात हुई। इस तरह हँसते हुए भीमकी युधिष्ठिरने रोका और कहा कि भाई, उत्तम पुरुषोंका ऐसा स्वभाव होता है जो किसी हालतमें भी विकृत नहीं होता; किन्तु सदा
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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