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जा रही है तब उसने मोहन वाण छोड़ कर सब कौरवोंको मूच्छित कर दिया उनमें केवल अपयशका पात्र एक दुर्योधन ही होशमें रहा ।
पाण्डव-पुराण |
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इस प्रकार अपनी सारी सेनाको मूच्छित देख कर दुर्योधन बढ़ा घबढ़ाया। वह तव अपनी मर्यादा भूल कर विह्वलसा हुआ रण-स्थलमें इधर उधर घूमने फिरने लगा | यह देख चित्रांगदने उसे ललकारा । फिर क्या था, उन दोनोंका तीक्ष्ण वाणोंके द्वारा परस्परमें भीषण युद्ध होने लगा, जिसे देख कर देवोंने उन दोनोंकी भूरि भूरि प्रशंसा की ।
इस तरह चित्रांगदको युद्धमें धीरतासे डटा देख कर अर्जुनने उसकी खूब तारीफ की। उसने अपने और और शिष्योंको भी युद्धके लिए आदेश किया । इससे लक्ष्य वाँध में प्रवीण गंधर्वको अच्छा मौका मिला । उसने उसी वक्त अपने शीघ्रगामी वाणोंके द्वारा वातकी वातमें ही दुर्योधनकी धुजाको छेद दिया और बड़ी बहादुरी के साथ चाण- प्रहार जारी रक्खा । अन्तमें उसने थोड़े ही समय में उसके रथ के घोड़ों को वैध कर अपने अपूर्व पराक्रमसे रथको भी वे काम कर दिया | इसके बाद वह धनुर्धर गंधर्व दुर्योधनसे बोला कि दुष्ट, तू अब भाग कर कहॉ जायगा ? हे खल, तूने अपनी खलतासे सारे संसारको खल बना डाला है । पर अब तुझे देखता हूँ कि तू कैसा बहादुर है । अब मेरे मारे तू कहीं भी नहीं बचेगा । पाप-पण्डित, तूने अपनी दुर्जनता से बहुतेक प्राणियों का व्यर्थ ही वध किया है । देख, यह तुझे तेरे उसी पापका फल मिला है और उसी कारण से तू हथियार - रहित बिल्कुल ही दीन वन गया है । इसके बाद उसने दुर्योधनको पशुकी नाई नागपाशसे बाँध लिया । यह देख डरके मारे उसके और और वीर-गण दिशारूपी स्त्रियोंकी शरण में भाग गये । फिर उनका कुछ पता न चला ।
इधर दुर्योधनको वाँध लेनेसे चंद्रमा के जैसा निर्मल गंधर्वका यश भी संसारमें फैल गया । लोग मुक्तकंठसे उसके गुण गाने लगे कि तू धन्य है जिसने कि दुर्योधन जैसे वीर शिरोमणिको भी बॉध लिया । सच है न्यायसे किसकी जीत नहीं होती । अर्थात् नीति से सभीकी विजय होती है । उधर दुर्योधनके पकड़े जाने पर सब योद्धा, सवार, महावत और हाथियों पर चढ़े हुए कौरव शोकसागर में डूब गये । यह सब ही पापका फल है जो उसके योद्धा - ओंका इतना भारी अपमान हुआ ।