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________________ अठारहवाँ अध्याय । २७३ परंतु ये कलहकारी कौरव उनकी भी सीख नहीं मानते और न ये अपने परम गुरु द्रोणाचार्य और चाचा विदुरकी बात सुनते हैं । ये उन्मार्ग-गामी जो जीमें आता है वही वैर-विरोधका काम कर बैठते हैं । ये न्याय-शून्य अपनी मन-मानी कर यहॉ युद्धके लिए आ रहे हैं। इस लिए भक्तिवत्सल और रणको आतिथ्य देनेवाले आप लोग भी युद्ध के लिए तैयार हो जाइए। . __ नारदके इन उत्तेजक वचनोंको सुन कर चित्रांगद क्रोधसे लाल हो उठा और वैरी-रूपी-जंगलके लिए दावानलके जैसे उस वीर योद्धाने उसी समय . गर्वके साथ रणके लिए तैयारी कर दी। इसी समय उधरसे दुर्योधनकी चतुरंग सेना भी सज कर युद्धके लिए आ गई । इसमें दुर्योधनके सब भाई थे और वे जी-जानसे युद्धका प्रयत्न करते थे। दुर्योधनकी सेनाको देख कर चित्रांगद क्रोधसे संतप्त हो उठा और उसके मनमें नाना प्रकारकी तरंगें उठने लगी । वह स्वच्छ यशशाली गंधर्वके साथ ही शत्रु पर टूट पड़ा। यह देख दुर्योधनके सेना-समुद्रमें बड़ा क्षोभ मच गया । देखते देखते ही उस विचित्र योद्धाने-जैसे अगस्त ऋषिने समुद्रको सुखा दिया था वैसे ही उस-सारे सेना-समुद्रको सुखा दिया । ___ अपने पक्षकी सेनाको इस तरह नाश होती हुई देख कर वलशाली दुष्टचित्त शल्य, विशल्य और दुःशासन आदि योद्धा युद्ध के लिए उठे । उन्होंने खूब जोरसे वाण चलाना शुरू किया । परन्तु उधर चित्रांगद उनके छोड़े हुए बाणोंको अपने शर-कौशलसे छिन्न-भिन्न करता जाता था। इस तरह रणकी लालसा रखनेवाले दोनों ओरके वीरोंमें परस्पर खूब वाणोंकी मारा-मार हुई, जिसमें हजारोंको तो माणोंसे हाथ धो बैठना पड़ा। इस युद्धमें योद्धागण महान तीक्ष्ण वाणों, गदाओं, भीलों और तीक्ष्ण तलवारों के द्वारा एक दूसरेसे घोर युद्ध कर रहे थे। इस रणमें भूशलोंकी मारसे कितने ही युद्ध-कुशल प्राणोंको खोकार धराशायी ' हो गये थे। सच तो यह है कि ऐसा कोई भी अनिष्ट नहीं जो कि उस युद्धमें न हुआ हो। कितने ही युद्ध-बी के हृदय होसे चिर गये थे । अतः वे पृथ्वी पर पड़े हुए ऐसे जान पड़ते थे मानों मूर्छाके कारण पृथ्वी पर सोये हुए ही हैं । इस समय जब गंधर्वने देखा कि कौरवोंके तीक्ष्ण बाणोंके द्वारा मेरी सेना वेधी पाण्डव-पुराण ३५
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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