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________________ २७२ पाण्डव-पुराण । amo norm ammmmmmmmmmmmmwwwimw wwwwwwe n n n armimmorns आये । वह वहाँ आया जहाँ उसके भाई युधिष्ठिर आदि ठहरे हुए थे। उन्हें देख कर वह विमानसे उतरा और उसने उन्हें भक्तिभावसे यथायोग्य नमस्कार किया। जबसे अर्जुन चला गया तवसे उसके वियोगसे पांडव बड़े दुःखी हो रहे थे । अत: उसके समागमसे उन्हें भी बड़ा हर्ष हुआ । कौन ऐसा पुरुष है जिसे अपने बन्धुके समागमसे सुख न हो। इसके बाद पुण्यात्मा पार्थ जाकर प्रणयवती द्रोपदीसे मिला । उससे मिल कर उस प्रतापीको वहुत शान्ति मिली। इस समय धनुष-विद्या-कुशल चित्रांगद आदि सत्पुरुष विद्याधर भक्तिसे सदा धनंजयकी सेवामें उपस्थित रहते थे तथा महामान्य और विज्ञानी युधिष्ठिरकी आज्ञाको भी शिरोधार्य करते थे। उधर एक दिन दुर्योधनको खबर लगी कि न्याय मार्ग-गामी पांडव सहाय वनमें आ गये हैं। यह सुन उसे बड़ा क्रोध आया और वह बहुत सी सेनाको साथ लेकर उनको मार डालनेके लिए निकला। इसी समय इस बातकी खवर देनेके लिए ऋषितुल्य संयमी नारद चित्रांगदके पास आये । वे उससे बोले कि चित्रांगद, तुम वैरियोंसे भरे हुए और भयावने इस जंगलमें किस लिए रहते हो । उन्होंने गंधर्व आदिको भी सम्बोधित करके कहा कि कुछ समझमें नहीं आता कि तुम लोग इन वनवासी पांडवोंकी सेवामें ऐसे क्यों लीन हो रहे हो । यह सुन कर चित्रांगदने कहा कि प्रभो, महापुरुष धनंजय हमारा गुरु है । इस महाभागने वैरियोंको वारण करके इन्द्रको राज-गादी पर बैठाया है, अतः यह हमारा स्वामी है और हम सब सदाके लिए इसके सेवक हैं । यह सुन नारदने कहा कि देखो, अभी यहाँ दुर्जय दुर्योधन आ रहा है । इस लिए हम तुम्हारा सञ्चा शिष्यपना तभी समझेंगे जव कि तुम लोग एक क्षणमें ही उसे साथियों सहित मार भगाओगे और यमका घर दिखा दोगे । नहीं तो तुम्हारा यह गाल-फुलाना किसी भी कामका नहीं कि हम अर्जुनके बड़े सेवक हैं। ___ क्या तुम लोग मुझे जानते हो, यदि नहीं जानते तो सुनो, मै आजन्म ब्रह्मचारी-स्त्रीके नामसे भी विमुख-और धर्मकर्ममें लीन रहनेवाला नारद हूँ। देखो, भीष्म पितामह महान बुदिशाली और बड़े पराक्रमी हैं।
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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