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________________ २७१ अठारहवाँ अध्याय । गिरि पर रहता है। स्वामिन, पुण्ययोगसे आज मुझे आप जैसे महामति पुरुषोंके दर्शन भी मिल गये हैं, जिसके लिए कि मैं बहुत दिनोंसे लालायित था । अव • अन्तमें आपसे मेरा यही नम्र निवेदन है कि आप मेरे साथ चलिए और अपना कर्तव्य कीजिए । इसके बाद वे दोनों फहराती हुई धुजाओंवाले एक व्योमयानमें बैठ कर वहाँसे चल दिये । जिस विमान पर वे सवार थे वह घड़ी तेजीसे चलता था और रण-घन्टाके शब्दसे शब्दमय किया जा रहा था। वे थोड़ी ही देरमें विजयार्द्ध महागिरि पर पहुँच गये । उनके आनेका हाल सुन कर इन्द्र सन्मुख आकर उनसे बड़े स्नेहके साथ मिला । उधर इन्द्रके शत्रुओंको ज्यों ही पार्थके आनेकी खबर लगी त्यों ही वे विमानों पर सवार होहो कर आये और उन्होंने सब दिशाओंको घेर लिया । यह देख कर अर्जुन खेवटियाफी भाँति इन्द्रके साथ विमानमें बैठ शत्रुओंके सामने गया और उसने रण-घोषणा कर दी। जिसको सुन कर प्रचंड धनुपधारी रण-कुशल शत्रु पार्थ धनुर्धरके साथ युद्धके लिए तैयार हुए और उन्होंने उसके साथ युद्ध छेड़ दिया । वह युद्ध इतना भीषण था कि जिससे पार्थको भी यह पता चल गया कि शन्नु सामान्य शस्त्रसे नहीं जीते जा सकेंगे; किन्तु दिव्य शस्त्रसे पराजित होंगे । अतः उसने दिव्यास्त्रके द्वारा कितने ही शत्रुओंको नागपाशसे वॉध लिया, वहुतोको जला कर भस्म कर दिया और बहुतोंको अर्द्धचन्द्र वाण द्वारा छिन्न-भिन्न कर दिया। अन्तमें वह इन्द्रको शत्रु-रहित करके नगाड़ोंकी आवाजके साथ-साथ रथनूपुर चला गया। इस समय रथनपुरकी स्त्रियोंने घर घरमें मंगल गीत गाये और धनंजयकी जयके समाचार दिगंगनाओंके कानों तक पहुँचाये । गाथकोंने पांडवोंके वंशकी तारीफ की और उसका यश वर्णन किया तथा मद-रहित हुए सव विद्याधरोंने भक्तिभावसे पार्थकी पूजा-प्रशंसा की। ___ इसके वाद अर्जुन बहुतसे विद्याधरोंको साथ लेकर विजयार्द्धकी दोनों श्रेणियोंको देखनेके लिए गया और थोडे ही समयमें उन्हें देख कर वह वापिस रथनपुरमें आ गया। इसके बाद उसने विधाघरोंके आग्रहसे गंधर्व आदि मित्रों के साथ वहाँ पाँच साल विताये और बाद वह वहाँसे मित्रों सहित चला आया। उस यशस्वीके साथ ही धनुषविद्या सीखनेवाले चित्रांगद आदि उसके सौ शिष्य भी चले
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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