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था । वह नमिके वंशका था । वह कान्तिशाली और विद्याओंके विधान से विशुद्ध आत्माका धारक था । वह विद्याधर था । उसके पुत्रका नाम इन्द्र है । वहू स्फूर्तिवान और बड़ा शक्तिशाली है । इसके सिवा उसका एक पुत्र और भी हैं। - उसका नाम विद्युन्माली है । वह शत्रु-सन्ततिका बड़ा भयानक शत्रु है । एक दिन क्षणमें नष्ट होनेवाले बादलोंको देख कर विद्युत्प्रभ संसार - देह-भोगों से विरुक्त हो गया, अत एव इन्द्रको राज-पाट और विद्युन्मालीको युवराज पद देकर वह स्वयं निःशल्य हो, दीक्षित हो गया ।
पाण्डव-पुराण |
इसके बाद युवराज विद्युन्मालीने प्रजा पर बड़ा अन्याय करना आरम्भ किया । वह कभी नगरके लोगों की स्त्रियोंको पकड़ लेता, कभी उनका धन हरण कर लेता और कभी उन्हें और और संकट देता। सांराश यह कि वह सब तरह प्रजाको दुःख देता था । अखिर परिणाम यह हुआ कि उसके मारे सारे नगरमें उपद्रव ही उपद्रव मच गया। यह देख उसे एक दिन इन्द्रने एकान्तमें बुला कर कुछ उचित सीख दी। परन्तु उसका विद्युन्माली पर विपरीत ही प्रभाव पड़ा, जिससे वह इन्द्रसे भी विमुख हो गया; और मदसे मत्त हो उससे वैर रखने लगा । इसके बाद वह क्रोध आ नगरी छोड़ कर ही चला गया और बाहिर रह कर लोगोंको लूटने-खसोटने लगा । वहाँसे कुछ दिनों में वह खरदूषणके वंशके लोगोंके साथ स्वर्ण - पुरमें जाकर वहीं रहने लगा ।
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इस प्रकार जब इन्द्रको शत्रुकी ओरसे अत्यधिक संताप पहुँचा तब उसे राहुके द्वारा ग्रसे गये चंद्रमाकी भाँति क्षणभरके लिए भी सुख पाना कठिन हो गया । वह हमेशा ही चिन्तासे व्यग्र रहने लगा और यही कारण है कि भयके मारे वह अब नगरीके फाटक बन्द करवाये रहता है और गुप्त रीति से अपने दिन बिताता है ।
महाराज, मैं उसी इन्द्रके सेवकका एक पुत्र हूँ, 'जिसका नाम विशालाक्ष हैं और मेरा नाम चन्द्रशेखर है । अतः पिताके स्वामीको इस तरह चिन्तासे संतप्त और शोकाकुल देख कर मुझसे नहीं रहा गया । और इसी कारण मैंने एक निमित्तज्ञानीको प्रणाम कर विनयके साथ पूछा कि विभो, इन्द्रके शत्रुदलका नाश कैसे और कब होगा । उत्तर में उन निमित्तज्ञानीने कहा कि जो मनोहर गिरि पर तुझे जीतेगा वही पार्थ धनुर्धर इन्द्रके शत्रुओं का भी संहार करेगा । बस, प्रभो, उस नैमित्तिकके वचनों पर विश्वास करके ही मैं गुप्त वेशमें इस