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________________ ર૬૮ ' पाण्डव-पुराण । एक मनोहर नामके मनोहर पहाड़को देखा । देखनेकी इच्छासे वह उस पर चढ़ गया । वहाँसे उसने बड़े बड़े विशाल पत्थरों और वृक्षोंसे विषम पृथ्वी तलको देखा। इसके बाद वह जोरसे चिल्ला कर बोला कि इस पहाड़ पर कोई देव, विद्या- । धर या मनुष्य है ? यदि हो तो वह मेरे सामने आवे और मुझे कोई ऐसा उपाय बतावे जिससे मेरा अभीष्ट सिद्ध हो; और अन्य जनोंके सव मनोरथोंको साधनेवाले पदार्थोकी सिद्धि हो । इसके उत्तरमें आकाशमें फैलती हुई आकाशवाणी हुई कि पार्थ, मेरी वात एकाग्र चित्तसे सुनो। इसी भरत क्षेत्रमें वैताब्य नाम एक पहाड़ है । उसकी दो श्रेणियाँ हैं.। एक उत्तरश्रेणी और दूसरी दक्षिणश्रेणी । आप वहाँ जाइए । वहाँ अतिशीघ्र ही आपको जयलक्ष्मी अपनावेगी और आपके सौ ऐसे शिष्य होंगे जो आपके सभी मनोरथोंको साधेगे । परन्तु वहाँ आपको पाँच साल तक रहना चाहिए । निश्चय रखिए कि इसके बाद नियमसे आपका आपके वान्धवोंके साथ समागम होगा । इस आकाशवाणीको सुन कर अर्जुनको बड़ी खुशी हुई। वह वैग ही था कि इतनेमें वहाँ एक भील आ गया । उसका शरीर भौंरे जैसा काला और लम्बा था । उसका मुंह और ओंठ सूखे हुए थे । वह वातुल था, दुन्तुर था, काले केशोंवाला था । वह एक हाथमें प्रचंड अखंड धनुष और दूसरे हाथमें वाण लिये था । और उसे चढ़ानेके कारण उसके नेत्र रक्त जैसे लाल हो रहे थे। सारांश यह है कि वह बड़ा. भयंकर मूर्ति था । उसको देख कर अर्जुनने कहा कि वनेचर, यह धनुष मेरे योग्य है, इस लिए इसे तुम मुझे दे दो। तुम व्यर्थका भार क्यों लिये फिरते हो । ऐसा उत्तम धनुष महान पुरुषोंके ही हाथमें शोभा देता है । तुम व्यर्थ ही अपने आपको कष्टमें काहेके लिए डाल रहे हो अर्जुनकी इन बातोंसे तो उसे बड़ा क्रोध आया और वह उसके विरुद्ध खड़ा हो गया। उसने आकाशमें मेघकी नॉई गर्जनेवाले धनुषका टंकार किया और उस पर बाण चढ़ाया । इस समय उसके धनुषकी आवाज सुन कर सारे वनेचरोंके दिल दहल गये। इसके वाद धनंजय और वह भील दोनों ही युद्धके लिए आमने सामने खड़े हुए । उन शूरवीरों में परस्परमें खूब ही तीव्र प्रहारों द्वारा युद्ध छिड़ा । कर्ण पर्यन्त डोरीको खींच खींच कर छोड़े गये तीक्ष्ण वाणोंके द्वारा उनमें खूब युद्ध
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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