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20. ANANAWWANA-N
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सत्रहवाँ अध्याय।
२६५ संसार भरमें तुम्हारा यश विस्तृत हो । देखो, यह तुम्हारे भाईकी स्त्री है, पवित्र है, जिसको कि तुमने घरसे निकाल कर बाहिर कर दिया है । विश्वास रक्खो कि जो कोई अपनी भौजाईका तिरस्कार करता है उसे दुर्गतिके दुःसह अनन्त दुःख झेलने पड़ते हैं। ___अपनी इस दुर्दशासे दुःखी हो ऑसू वहाती और रोती हुई द्रोपदीने पांडवोंके पास आकर कहा कि देखिए जितना आप लोगोंका तिरस्कार हुआ है उससे भी अधिक-चोटी पकड़ कर खींची जानेके कारण-मेरा हुभा है । हाय, जिसके आगे मेरा सिर कभी खुला नहीं रहा उसीने मेरा सिर खोल कर चोटी खाँची । बतलाइए अव मेरा बचा ही क्या! यमके जैसे दुष्ट दुःशासनके आगे मैं कर ही क्या सकती थी। उसने मेरी सब इज्जत ले ली । द्रोपदीने भीमको सम्बोधित करके कहा कि हा भीम, यह मैं जान चुकी कि मेरे इस अपमानका बदला तुम्हारे विना कोई नहीं ले सकता । किसीमें ऐसी सामर्थ्य नहीं जो इस पराभवको दूर करे । द्रोपदीके ऐसे तिरस्कार भरे वाक्यों को सुन कर क्रोधमें आकर भीमने युधिष्ठिरसे कहा कि स्वामिन्, मैं आज शत्रुओंके कुलको जड़ मूलसे उखाड़े फेंके देता हूँ । द्रोपदीके इस तिरस्कारको न सह सकनेके कारण, पार्थ भी उठा। यह देख कर युधिष्ठिरने कहा कि यह हम लोगोंके लिए उचित नहीं है । जिस तरह वायुके वेगसे क्षोभित होने पर भी समुद्र अपनी मर्यादा नहीं छेड़ता उसी तरह ही महान् पुरुष भी किसी भी अवस्थामें अपनी मर्यादाको नहीं लॉघतें। युधिष्ठिरने इस तरह समझा कर वचन-रूपी अंकुशसे भीम-रूपी मदोन्मत्त हाथीको अनर्थ करनेसे रोका और अर्जुनकी क्रोध-वन्हिको भी उसने वचनरूपी शीतल जलसे शान्त कर दिया । वह उन्हें समझाने लगे कि भाइयो, अभी कुछ समय धीरज रक्खो। बाद जब मैं समर्थ हो जाऊँगा तव शत्रु-कुलका अवश्य ही नाश करूँगा इसमें तनिक सा भी सन्देह नही । परन्तु यह निश्चित है कि चाहे जो हो, अपने वचन नहीं हारूँगा । मेरे अद्भुत पराक्रमी वीर भाइयो, अव यहाँ रहनेकी मति छोड़ कर शीघ्र चल दो और वन जाकर डेरा डालो । अवसे हमें वन ही अपनी राजधानी बनानी होगी।
___ युधिष्ठिरके इन वचनोंको सुन कर भीम, अर्जुन आदि चारों भाई मान छोड़ कर वन चलनेके लिए उठ खड़े हुए और अपने वियोगसे अतीव दुःखित अतएव रोती हुई जननी कुन्तीको विदुरके घर ही छोड़ गये । उन्होंने अपमानसे
पाण्या-पुराण ३४