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'पाण्डव-पुराण
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रखनेको तैयार हो गये । इतनेमें ही हुंकार करता हुआ भीम वहाँ आ पहुंचा
और सारी सम्पत्तिको हारी हुई तथा बाकीको दाव पर रक्खी हुई देख कर उसने भयभीत हो युधिष्ठिरसे कहा कि पूज्य भाईसाहब, यह क्या है ? तुमने सारी हानि करनेवाला यह जूआ काहेको शुरू किया । क्या आपको नहीं मालूम है कि इस जूआसे सारा यश नष्ट हो जाता है और सारे संसारमें वदनामी होती है। इससे पद पद पर हानि भोगनी पड़ती है । महाराज, यह द्यूत सभी अनाँका मूल है और इस लोकका विगाड़नेवाला तो है ही, परन्तु एक क्षण भरमें जीवोंके परलोकको भी विगाड़ देता है।
___यह सब व्यसनोंमें प्रधान है, दुर्द्धर दुःखोका दाता है। विद्वान् मुनिजनोंने इसी लिए इसे भी मदिराकी नॉई विल्कुल ही हेय बताया है । उन्होंने तो यहाँ तक कहा है कि इसके समान संसारमें न तो कोई पाप है, न हुआ और न होगा। भीमके ऐसे उत्तम वचनोंको सुन कर युधिष्ठिर क्षुब्ध हो उठे और जूआ खेलना उन्होंने बंद भी कर दिया, परन्तु इसके पहले ही वे बारह वर्षके लिए सारी पृथ्वीको पण पर रख कर हार चुके थे। ..
इसके बाद व्यथित मन हो युधिष्ठिर भीम आदिके साथ घरको चले आये। उनके घर पहुंचते ही दुर्योधनने एक दूतको उनके पास भेजा । दूतने आकर युधिष्ठिरको प्रणाम किया और कहा कि हे महीनाथ, मेरे मुखसे दुर्योधन महाराज कहते हैं कि वारह बर्षके लिए आप यहाँसे चले जायें; क्योंकि यहाँ रहनेमें आपका हित नहीं है । आप अपना भला चाहते हैं तो आपको बारह साल तक वनमें रहना चाहिए और सो भी इस तरह कि जिसमें इतने दिनों तक कोई आप लोगोंका नाम भी न सुन सके । कहनेका मतलब यह है कि आपको इसीमें सुख है कि आप वनवास स्वीकार करें। आप लोग आज ही रात यहॉसे चले जायें, नहीं तो आप लोगोंको संताप भोगना पड़ेगा। दूत इतना निवेदन करके चला गया।
_इधर दुष्ट दुःशासन द्रोपदीके महलमें आकर, द्रौपदीकी चोटी पकड़ उसे महलसे वाहर खींच लाया । उस समय ऐसा जान पड़ता था मानों- उसने कमल-चनमें रहनेवाली महान लक्ष्मीको ही कमल-वनसे निकाल लिया है। यह हाल देख भीष्म पितामहने कौरवोंसे कहा कि यह आप लोग अच्छा नहीं करते । इससे सारे संसारमें तुम्हारी अपकीर्ति होगी । काम वह करो, जिससे