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________________ २६२ पाण्डव-पुराण। । ~wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwr ठहरिए- अब तुम हमारे क्रोधसे बच कर जाओगे कहाँ ? हम तुम्हें कहीं छोड़नेके नहीं । यह कह कर उन देवोंने सारे गगन-मंडलको मेघोंसे भर दिया। काजलके जैसे काले वे मेघ महान् ध्वनि करते हुए गर्जने लगे। उनको गर्जते हुए देख कर अर्जुनने विजलियोंको दिखाते हुए कृष्ण कहा कि देखिए मैं इस मेघमालाको एक ही बाणसे अभी उड़ाये देता हूँ। मैं सुरोंकी' इस मेघविद्याको एक ही बाणके द्वारा अभी छेदे डालता हूँ । इसके बाद वह दावानलसे बोला कि हे दावानल, तुम यथेष्ट रीतिसे विहार करो। तुम्हें कोई नहीं रोक सकता । तुम्हारे साथ द्वेष करनेवाले या तुम्हारी भक्षक इस मेघमालाको तो मैं अभी नष्ट किये देता हूँ । इतना कह कर अर्जुनने गांडीव धनुष हाथमें उठाया और उसे चढ़ा कर उसने उसकी टंकार की, जिसको सुन कर सारा जगत बहिरा हो गया और धनुषकी यमके हुंकार जैसी ध्वनिको सुन कर अर्जुनको डरानेके लिए देवगण बोले कि अर्जुन, कपटसे वनको जला कर तुम हम जैसे विक्रमशाली देवोंसे बंच कर कहाँ रहोगे? गरुड़के आगे वलवान सॉपकी भी क्या चल सकती है? । इसके बाद देवोंने क्षुब्ध होकर धारासार जलकी वरसा की और थोड़ी ही देर में सारी पृथ्वीको जलमय कर दिया । उन्हें अर्जुनकी वनको जला डालनेकी इच्छाको नष्ट करना था। यह देख अर्जुनने शर-समूहके द्वारा एक उत्तम मंडप रचा और पानीकी एक बूंद भी दावानल पर नहीं पड़ने दी, जिससे दावानल न बुझ कर बढ़ता ही गया। अन्तमें देवतोंने और अधिक वरसा की पर उससे भी वह दावानल शान्त नहीं हुआ। इसी समय क्रोधमें आकर कृष्णने वायु बाण छोड़ा, जिससे उन मेघोंको बड़ा त्रास हुआ और साथ ही अर्जुनने बाण चलाये, जिससे वातकी वातमें सव मेघ नष्ट हो गये; जैसे कि गरुड़के मारे पूर्ण बलशाली फणेश्वर भी भाग जाते हैं । तब अर्जुनसे इस प्रकार तिरस्कृत होकर देवगण महान् ऐश्वर्यशाली इन्द्रके पास गये । और इन्द्रसे उन्होंने आपना सारा हाल कह कर कहा कि देव, आपके क्रीड़ा करनेके योग्य, सुंदर वृक्षावलीसे सुशोभित खांडव वनको अर्जुनने जला कर खाक कर दिया है। हम लोगोंने उसके बचानका बहुत कुछ उपाय किया; परंतु उस मानीने हमें वहॉसे मार भगाया और हमारा बड़ा तिरस्कार किया, जिससे भयातुर होकर हम सब आपकी शरणमें आये हैं। यह सुन कर इन्द्रको बड़ा क्रोध आया। वह उद्विग्न हुआ। इसके बाद वह ऐरावत हाथीको
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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