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________________ सत्रहवाँ अध्याय । २५९ एक समय महत्वशाली अर्जुनने स्वच्छपना और भद्र विचारोंवाली सुभद्राको जाते हुए देख कर सोचा कि रूप-सौन्दर्य से इन्द्राणीको भी जीतनेवाली यह सुन्दरी कौन है । यह अपने रण-क्षण शब्द करते हुए नूपुरोंके शब्दसे देवांगनाओंको जीतती है और कटाक्ष-निक्षेपसे उस कामको भी जीवित कर देती हैं जिसे पहले ध्यान-रूपी अग्निके द्वारा योगीजन जला चुके हैं । नहीं जान पड़ता यह रूप-सौन्दर्यकी सीमा कौन है । रति है या लक्ष्मी पद्मावती है या रोहिणी; या सूरज की प्रिया है । जो हो यदि यह मृगनयनी और सुख-चन्द्रसे अँधेरेको दूर करनेवाली अनिंद्य सुन्दरी मुझे मिले मेरी मिया बने तब ही मैं अपना सौभाग्य समझँगा और तब ही मुझे सुख होगा। इसके बिना मेरा जन्म ही व्यर्थ है। अतः किसी-न-किसी उपायसे मै इसे अपनी प्राण-वल्लभा बनाऊँगा । मन ही मन यह सोच कर उस मनस्वीने कृष्णसे पूछा कि महाराज, साक्षात् लक्ष्मी जैसी और उत्तम लक्षणोंवाली यह किस महाभागकी पुत्री है । उत्तरमें कृष्णने कुछ मुसक्या कर कहा कि धनंजय, क्या तुम इसे सचमुच ही नहीं जानते । यह अतीव रूप-सौन्दर्यशालिनी मेरी सुभद्रा नाम वहिन हैं । यह सुन पार्थने हँस कर उत्तर दिया कि तब तो यह गजगामिनी मेरे मामाकी पुत्री है और मेरे सम्बन्धके योग्य है । इस पर कृष्णने कहा कि अच्छी बात है धनंजय, तुम्हारी इस रायसे मैं खुश हूँ और इसके साथ तुम्हारा संबंध स्थिर करता हूँ । तुम इसे स्वीकार करो। यह सुन अर्जुन कृष्णके मुख कमलकी ओर देखने लगा । तब कृष्णने अर्जुनका अभिप्राय जान कर उसके लिए वायुके वेग जैसे शीघ्रगामी घोड़ोंवाला एक सुन्दर रथ मँगवा दिया, जिसे पाकर अर्जुन प्रसन्न हुआ । इसके बाद वह सुभद्राको परस्पर प्रेमालाप द्वारा अपने पर मोहित कर, रथमें बैठा, वायुके वेगसे भी जल्दी चलनेवाले घोड़ोंके द्वारा, वायुके वेगकी नाँई अति शीघ्र ही वहाँसे चल दिया । उधर जव यादवोंने सुभद्राके हरे जानेकी बात सुनी तब वे बड़े क्रुद्ध हुए और कवच वगैरह पहिन पहिन कर, धनुष-बाण ले उसी वक्त दौड़ पड़े । कोई कवच पहिन कर हाथमें मुहर लेकर दोड़े; कोई भाला और चमकती हुई तलवार लेकर भागे, कोई रथोंमें सवार होकर और कोई पैदल ही शक्ति हाथमें लेकर चले कोई आकाश-तल तरंगोंकी नॉई उछलने कूदनेवाले घोड़ों पर सवार होकर चले और कोई यह कहते हुए चले कि घोड़े आदि सवारियोंकी जरूरत ही क्या हैं, आखिर काम तो तलवारोंसे ही पड़ेगा । अतः वे कवच वगैरह बिना पहिने ही हाथमें तलवार लिये हुए भागे । कुछ वीरगण अर्जुनकी इस घोखे ·
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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