________________
२५८
पण्डिव-पुराणें। पांडवोंके साथ पितामहकी ऐसी मीति देख कर एक समय कौरवोंने उनसे कहा कि कलुषित-चित्त पितामह, तुमने यह क्या करना शुरू किया है। भला सोचिए तो जब आप पांडवों और कौरवोंकी राज-सम्पत्तिको वरावरीसे भोगते हो तव फिर इस ; प्रकार पांडवकी ओर ही आपका झुकाव क्यों है ? इसका कारण क्या है । दुर्योधन
आदिके ऐसे क्रोध भरे शब्दोंको सुन कर पितामहने कहा कि कौरवाधीश, सुनिए, इसका भी कारण है । और वह यह कि ये सत्पुरुष हैं, शूरवीर हैं, अच्छे गुणोंके पात्र हैं, नीति-न्यायके पण्डित हैं और सच्चे धर्म-रूप अमृतके पीनेवाले हैं। इसके सिवा इनमें बड़ा भारी गुण यह है कि ये बीती हुई और आनेवाली बातोंकी व्यर्थ चिन्ता नहीं करते । ये वर्तमानमें उपस्थित विषय पर ही पूरा पूरा विचार करते हैं । वस, इसीसे ये मुझे अतीव प्यारे हैं।
एक समय कृष्णने प्रेमके वश हो अर्जुनको क्रीड़ाके लिए गिरनार पर्वत पर वुलाया। विशाल गिरनार पर्वत मनुष्यकी तुलना करता था । मनुष्यके वंश होता है उसमें वंश-बाँस-थे। मनुष्यके पाँव होते हैं उसके किनारेकी भूमि ही पाँव थे । मनुष्य तिलक लगाते हैं उसमें भी तिलक वृक्ष थे। वह बड़ा भारी उन्नत था और उसमें नाना जातिके जीव-जन्तु रहते थे। कुछ समय उधरसे तो कृष्ण गिरनार पहुँचे और इधरसे क्रीड़ामें दत्तचित्त अर्जुन भी वहाँ पहुँच गया । उन दोनोंने प्रेमके साथ एक दूसरेका आलिंगन किया और वे महामना आनंद-चैनसे गिरनार पर क्रीड़ा करने लगे । क्रीड़ा करते हुए वे दोनों स्नेही ऐसे जान पड़ते थे मानों इन्द्र और प्रतीन्द्र ही क्रीड़ा करते हैं। उनकी क्रीड़ा विलक्षण ही थी। वे कभी वनमें दौड़ते फिरते थे; कभी पानीमें डूवते निकलते थे; कभी एक दूसरे पर वे केसर मिले हुए चंदनकी पिचकारी भर कर छोड़ते थे; कभी दौड़ते दौड़ते गिरनार पर चढ़ जाते और पीछे पाँव लौट आते थे कभी देवांगनाओंके जैसी नृत्यकारणियोंके नृत्यों और गीतों द्वारा मनोविनोद करते थे और कभी गैंद खेलते थे । तात्पर्य यह है कि इस तरहसे उन दोनोंने स्नेहके साथ गिरनार पर खूब क्रीड़ा-विनोद किया और दिलको बहलाया।
इसके बाद कृष्णके साथ साथ अर्जुन भी द्वारिकामें आया । वह उसमें प्रवेश करता हुआ अतुल विभूतिके धारक इन्द्रके जैसा शोभता था। अर्जुन मनोविनोद पूर्वक काल बिताता हुआ कृष्णके साथ द्वारिकामें बहुत दिनों तक रहा। उसके साथ अन्य राजा भी सुख-पूर्वक अपने समयको बिताते हुए वहीं रहे । इन राजोंके साथ पूरी पूरी राजविभूति थी । हाथी घोड़ों आदिकी पूरी पूरी सेना थी।