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________________ सोलहवाँ अध्याय। २५५ nun ann an nanann amenom स्थिर-चित्तसे उसके आगे बैठ गये । तव कुन्तीने दुर्योधनसे कहा कि भाई, धृतराष्ट्रके इस महान् वंशमें तुमने न जाने क्यों कालिमा लगाई। दुर्योधन, तुमने यह क्या किया जो अपने वंशको भी जलानेका यत्न कर वंशके नाश ही की चेष्टा की । देखो, जो अपने कुटम्बका नाश कर उत्तम सुख चाहते हैं वे वैसे ही कुमौत मरते हैं जैसे कि आगसे हरे वॉस जल कर खाक हो जाते हैं । यह राज्य भी तो तभी तक सुख देता है जब तक कि दिलमें इसकी चाह रहे। जब दिलसे इसकी चाह निकल जाती है तब यही उसे संताप, दुःख देनेवाला हो जाता है और बड़े बड़े अनर्थका कारण हो जाता है । क्योंकि यह राज्य वास्तवमें तृणके अग्र भागमें लगी हुई ओसकी बूंदके समान ही नष्ट होनेवाला है। फिर न जाने इसको चाहनेवाले क्यों अपने वंशके लोगोंको भी मार कर इसे चाहते हैं। ऐसे स्वार्थियोंके जीवितको धिक्कार है-एक वार नहीं, सौ बार नहीं; किन्तु असंख्य बार अनंत बार धिकार है। यह सुन कर दुर्योधन आदिका मुंह काला पड़ गया और लज्जाके मारे वे नीचा मस्तक करके रह गये । इसके बाद जब द्रुपदको यह जान पड़ा कि ये ब्राह्मण वेषधारी पांडव हैं तब उसे बड़ी खुशी हुई और वह अति शीघ्र द्रोपदीका विवाह करनेको तैयार हो गया। उसने पांडवोंको एक सुन्दर महलमें ठहराया। इसके बाद रथमें सवार होकर बाजोंके शब्द और जय कोलाहालके साथ अर्जुन विवाह-मंडपमें आया और उसने मंडपकी वेदीके ऊपर शुभ मुहूर्त और शुभ लममें उस विद्याधरकी पुत्री सहित द्रोपदीका पाणिग्रहण किया। इस समय नगाड़ोंके सुन्दर शब्द हुए, दुदमियोंकी गर्जना हुई और नटियों के मनोरम नृत्य हुए । कान्तिशाली द्रुपद राजाने इस समय आगन्तुक राजोंका दिव्य वस्त्राभूषण और उत्तम उत्तम वस्तुओं द्वारा खूव आदर सत्कार किया । इसके बाद भीष्म, कर्ण आदि अर्जुनके विवाहोत्सवको देख कर युवतिजनोंके साथ अपने अपने सुन्दर महलोंमें चले गये और चतुरंग सेना सहित चतुर पांडव तथा कौरव हस्तिनापुर चले आये। ___ वहाँ पांडवोंने बड़े ठाट-बाटके साथ नगरमै प्रवेश किया । इस समय हस्तिनापुरमें घर घर तोरण बाँधे गये थे और द्वार द्वार पर सुन्दर शोमाशाली कलश रक्खे गये थे। तात्पर्य यह कि इस वक्त हस्तिनापुरमें खूब ही शोभा की गई थी।
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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