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पाण्डव-पुराण। wmmmmmmmmmmmmmmmm warrm ammmmmran कमलोंमें नमस्कार किया और अपने पर बीता हुआ सारा हाल कह सुनाया । अन्तमें भाई-भाइयोंमें होनेवाले इस महान युद्धको द्रोणाचार्यने रोक दिया । इसके बाद उन्होंने पांडवोंसे कहा कि तुम लोग मेरी एक वात सुनो । वह यह कि तुम लोगोंको कौरवोंके इस दोष पर ध्यान नहीं देना चाहिए, क्योंकि तुम जानते हो कि हित किसमें है । पुत्रो, तुम लोगोंको अव रोष करना उचित नहीं। कारण रोष करनेसे कुछ हित साधन नहीं होता । तुम लोगोंके पुण्यके माहात्म्यको कौन कह सकता है कि जिसके प्रभावसे जलते हुए महलमेंसे भी तुम जीते जागते निकल आये और जहाँ जहाँ गये वहीं वहीं कन्या आदि सम्पदाके द्वारा पूजे गये । पांडव इस तरह द्रोणाचार्यके साथ वार्तालाप कर ही रहे थे कि इतनेमें भीष्म पितामह कर्ण, आदि कौरव राजा भी वहीं आ पहुँचे ।
और वे सब प्रीतिके साथ आपसमें नम्रता-पूर्वक यथायोग्य रीतिसे मिले-भेटे । तथा गर्व-रहित हुए कौरव नीचा मुंह करके चुपचाप बैठ गये और वे बड़े लज्जित हुए। __ इसके बाद कर्ण, द्रोण, भीष्म ( गांगेय ) आदिने कौरवोंकी और पांडवोंकी परस्परमें क्षमा करवाई --उनके हृदयका मैल दूर करवाया । यह ठीक ही है कि सज्जनोंका समागम शुभ कृत्योंके लिए ही होता है । अन्तमें दुर्योधनने' कहा कि लाखके महलमें मैंने आग नहीं लगाई और इस विषयमें मैं श्रीजिनेन्द्रकी साक्षी देता हूँ। मैं तो यही कहता हूँ कि जिस दुष्टने महलमें आग लगाई हो वह जन्तु-पीड़क पुरुष घोरातिघोर नरकमें पड़े । परन्तु यह बड़ा अच्छा हुआ जो आप लोगोंका समागम फिर हो गया और इससे हम लोगोंका अपवाद दूरगया। नहीं तो लोग हमें ही कलंक लगा रहे थे कि इन्होंने पांडवोंको जला दिया है । यह सच है कि पहले जन्ममें किये हुए कर्मको कोई रोक नहीं सकता चाहे फिर उससे जीवोंकी कीर्ति हो या अपयश । इस तरह बहाना करके कौरवोंने अपना दोष छिपा कर मुख पर मगिपन दिखाया । सच है दुष्टोंकी दुष्टता घट नहीं सकती । इस प्रकार कौरवोंने सब राजोंके दिलोंमें जैसे बना सन्तोष । करा दिया।
- इसके बाद कुंभारके घर जाकर भक्ति-भावसे नन्न राज-गणने कुलकी मर्यादा पालनेवाली कुन्तीको बड़े विनयसे नमस्कार किया । इसी प्रकार दुर्योधन आदि भी कुंतीको मस्तक झुका नमस्कार कर और उसे सन्तोषित कर