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________________ सोलहवाँ अध्याय । २५१ womammmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm हो । इस समय भीम अपनी गंभीर वाणीके द्वारा गजेन्द्र के जैसा गर्जता था और यमकी तुल्य निर्भय होकर शत्रुओंको दंड देता था। इस तरह सम्पूर्ण सेनाको मारता । पीटता हुआ भीम रमणीय रणांगण में सिंहके जैसा शोभता था और घास काटने वाला जैसे धासको काटता जाता है उसी तरह वह भी शत्रु-दलका संहार करता जाता था । भीमके ऐसे अपूर्व पराक्रमको देख कर वहाँ जो मध्यस्थ राजा थे वे उसकी जय जय ध्वनिके साथ तारीफ करते थे। इस तरह भीमके द्वारा अपनी सेनाको नष्ट हुई देख कर तूर्यनादसे सारे शत्रुओंको त्रास देता हुआ दुर्योधन उठा । उधरसे सेना लेकर कर्ण भी धनंजय पर टूट पड़ा और उस वीरने विघ्नसमूहके जैसे वाणोंको सब और छोड़ कर सारे आकाशको वाणोंसे पूर दिया। इस प्रकार अपने योद्धाओंको लेकर उसने अर्जुन के साथ खूब भीषण युद्ध किया । उधरसे पार्थ भी कर्णके छोड़े हुए वाणोंको बड़ी शीघ्रताके साथ छेदता जाता था। क्योंकि वह लक्ष्यवेध करनेमें वड़ा भारी कुशल था । अतः जैसे वायु मेघोंको उड़ा देता है वैसे ही वह कर्णके बाणोंको वारण करता था । उसके ऐसे अपूर्व धनुप-धाण-कौशलको देख कर कर्णको बड़ा भारी अचम्भा हुमा। वह मन-ही-मन सोचने लगा कि मैंने पृथ्वी पर आज तक ऐसा धनुष-बाण चलानेवाला कोई पुरुष नहीं देखा । कर्ण अपने हृदयके भावोंको न रोक सका । वह बोल उठा कि द्विजेश, तुम धनुष-विद्याके बड़े अच्छे पंडित हो । तुमने आज धनुप-विद्याके कौशलको दिखानेमें कमाल ही कर डाला । हम तुम्हारी इस कुशलताकी प्रशंसा ही नहीं कर सकते । यह तुम्हारी कुशलता संसार भर द्वारा स्तुत्य है। इसके बाद कर्णने वाणोंसे अर्जुनको पूरते हुए हँसते हँसते कहा कि द्विजेश, भला तुमने यह महोन्नत विद्या कहाँ पर सीखी है जो तुम्हारे आत्माके जैसे विलक्षण चमत्कारको दिखाती है और मनको मोहित करती है । तुम्हारी यह विद्या लब्धिके तुल्य है। हे द्विजोत्तम, क्या तुम पुण्यके उदयसे स्वर्गसे तो यहॉ नहीं आये हो । क्योंकि मैंने तुम्हारे जैसा धनुष-विद्याका पंडित और कहीं नहीं देखा । तुम इन्द्र हो या सूरज, अथवा अग्मि हो या रणमें उद्धतपनेको दिखानेवाले मरे हुए अर्जुन ही यहॉ जी कर आ गये हो । सच कहो तुम हो कौन ? कर्णके इन मश्नोंको सुन कर हँसता हुआ अर्जुन बोला कि राजन, मैं ब्राह्मण ही हूँ; लेकिन पार्थका सारथी रह कर मैंने यह धनुषविद्या पाई है और इसीके वल यहॉ ठहर सका हूँ। इस पर कर्णने कहा कि अच्छी बात है विभ, पहले तुम अपने उत्तमसे उत्तम ।
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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