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________________ २५० पाण्डव-पुराण। वाहनों पर थे तथा कोई पैदल थे। वे भॉति भाँतिके हथियार लिये हुए थे । कोई दंड लिये था, कोई ढाल तलवार बॉधे था और कोई भाला लिये थे । वे सभी मदसे उद्धत हुए मन-मानी बातें करते जाते थे । कोई क्रोधमें आकर कहते थे कि : जल्दीसे कन्याको पकड़ लो और इन दुष्ट तथा मतवाले ब्राह्मणोंको यहाँसे मार । भगा दो। यह सुन कर कोई मानी कहते थे कि ऐसा क्यों, पहले मानी द्रुपदको ही पकड़ कर न मार डालो, जिसके कारणसे यह सव झगड़ा खड़ा हुआ है । इस प्रकार शत्रुओंके शब्दोंको सुन कर द्रोपदी काँप उठी । उसे पसीना आ गया । वह अर्जुनकी शरण आ गई। उसको इस तरह घबड़ाई हुई देख कर भीमने कहा कि तुम डरो मत । प्रसन्न होकर मेरी भुजाओंके पराक्रमको देखो । मैं अभी इन वैरियोंको मार कर भगाये देता हूँ। मेरे मारे ये अभी एक क्षणभर भी यहाँ नहीं ठहर सकेंगे और पर्वतकी गुहाओंकी जाकर शरण लेंगे । इसके बाद रणांगणमें आई हुई उभय पक्षकी सेनाओंमें प्रचंड वाणोंके छोड़नेका शब्द होने लगा और घड़ा भारी क्षोभ मच गया । यह देख कर कि यमके तुल्य शत्रु पक्षकी सारीकी सारी सेना चढ़ करके युद्ध स्थल में आ पहुँची है, द्रुपद आदि भी युद्धके लिए तैयार हो गये । इसी समय द्विजोतम युधिष्ठिरने द्रुपदसे प्रार्थना की कि आप हमें अस्त्र-शस्त्रोंसे सुसज्जित पॉच रथ दीजिए । यह जान कर धृष्टद्युम्न आदि द्रुपदके पुत्रोंने मन ही मन सोचा कि ये लोग जो अस्त्र-शस्त्रोंसे सजे हुए रथ चाहते हैं इससे जान पड़ता है कि ये कोई महान् पुरुष हैं। इसके बाद धृष्टद्युम्न पाँचाली ( द्रोपदी) को अपने रथमें बैठा कर उसकी रक्षा करने लगा। इधर युधिष्ठिर स्थ पर आरूढ़ हो सौधर्म इन्द्रके जैसे शोभने लगे और गांडीव धनुष लेकर अर्जुन सफेद घोड़ोंके रथ पर सवार हो प्रतीन्द्र जैसा शोभने लगा। वह धनुष पर बाण चढ़ाये हुए था । इसी प्रकार द्रुपद भी सोनेके कवचको पहिन कर वैरियोंको कष्ट देने के लिए तैयार हुआ अपने वैभव और मुकुटसे अपूर्व ही शोभा पाता था। इतनेहीमें शत्रुकी दुर्द्धर सेनाको चढ़ आई देख कर भीम एक वृक्षको. . जड़से उखाड़ उसके ऊपर दौड़ पड़ा और यमके समान क्रुद्ध हो उसने , अपने आगे आनेवाले राजोंको, हीसने हुए घोड़ोंको, गर्जते हुए हाथियोंको मारा और 'रथोंको चूर करके उन्हें चक्र-रहित कर दिया । बात यह है कि वहाँ ऐसा कोई भी नहीं बचा जो भीमके द्वारा अधमरा न कर दिया गया
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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