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________________ सोलहवाँ अध्याय । ~^^^ n wwwww wwwnnanne on wwww wwww an --- विजली ही है। ये सब बातें दुर्योधनसे न सही गई, अतः वह दुर्मुख राजा लोगों को भड़काने लगा कि आप लोग ही कहिए कि इतने राजों के यहाँ होते हुए एक दीन ब्राह्मणको भला इस बातका अधिकार ही क्या था कि राजोंकी सभा में राधावेध करे । इसके बाद उसने और सब कौरवोंसे सलाह करके द्रुपद राजाके पास चन्द्र नामके एक सुशिक्षित दूतको भेजा । उसने दुपदके पास जाकर नम्रताके साथ कहा कि महाराज ये सब तेजस्वी राजे मेरे द्वारा कहते है कि द्रोण, दुर्योधन, कर्ण, यादव, मागध इत्यादि सभी राजोंके होते हुए कन्याने जो एक दीन ब्राह्मणको वरा है यह बड़ा भारी अन्याय किया है । आप ही सोचिए कि जो परदेशी है, जिसके देशका कुछ पता नहीं है और जो एक लोभी ब्राह्मण है जैसे कि और और ब्राह्मण होते हैं तब वह इतने राजोंके रहते हुए यहाँ से कन्या - रत्नको कैसे ले जा सकता है ? अतः आप इस लोभी ब्राह्मणको कुछ रत्न वगैरह भेंट देकर सीधी-साधी बातोंसे टाल दीजिए और राजोंके योग्य इस कन्याको किसी राजाके हवाले कीजिए । यदि यह बात आपके कानूकी न हो तो आप इन राजोंके साथ युद्ध करनेको तैयार होइए | चंद्र दूतके मुँह से राजोंके अभिप्रायोंको सुन कर क्रोधमें आ द्रुपदने उत्तर में कहा कि न्यायके जानकार और स्वयंवर विधिको जाननेवाले राजोंको अपने मुँहसे ऐसे वचनोंका निकालना ही अधर्म हैं । इस सम्बन्धमें और विशेष कहने की आवश्यकता नहीं । साध्वी द्रोपदीने स्वयंवर विधिसे जिसको वरा है वही यह भूसुर ( ब्राह्मण ) इसका घर है । मैं इसमें कुछ भी फेर फार नहीं कर सकता । इसमें युद्ध करनेका इन राजको अधिकार ही क्या है । क्योंकि चाहे नीच हो या ऊँच स्त्रीका वही वर होता है जिसे वह अपनी प्रतिज्ञाके अनुसार वरती है । इस लिए युद्ध की प्रतिज्ञा करना इनका ठीक नहीं है । हाँ, यदि वे न मानें और उन्हें युद्ध करने हीमें मजा है तो मैं भी इन व्यर्थ ही बुरे मार्ग पर जानेवालोंको युद्धके लिए निमंत्रण देता हूँ। यह सुन दूत लौट कर दुर्योधन आदिके पास आया और उसने द्रुपदके संदेशेको ज्योंका त्यों उन्हें सुना दिया । यह देख दुर्योधन आदि बड़े क्रुद्ध हुए और रणके लिए तैयार हो गये । उन्होंने उसी वक्त रणके आमंत्रणको सुचित करनेवाली रणभेरी बजवा दी । जिसे सुन कर युद्धके सब साधनों से युक्त होकर राजा लोग निकल पड़े । हाथियों विशाल सेनासे युक्त और अपने अपने वाहनों पर सवार थे । उनके साथमें जो योद्धा गण थे उनमें कोई रथ पर सवार थे, कोई अन्य अन्य पाण्डव-पुराण ३२ २४९ ~~m wwwww
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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