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सोलहवाँ अध्याय ।
२४७ करेगा । बहुतसे राजे लोग तो उस धनुषके उठानेके लिए इसी लिए असमर्थ हुए कि वह जलती हुई आगकी महान् ज्वालासे व्याप्त था; नागोंके फणोंकी फुकारोसे वह शब्द-मय हो रहा था । अतः जो उसे उठानेके लिए उसके पास जाते उन्हें वह अपनी प्रचंड ज्वालाके द्वारा भस्म किये डालता था, जिससे वे अपनी ऑखें बन्द कर करके उससे दूर भागते थे । कोई राजा उन भयंकर जहरीले साँपोंको देख कर दूरहीसे डरके मारे कॉपते थे और उनको न देख सकनेके कारण अपने नेत्रोंको ढक लेते थे । कोई हिम्मत बॉध कर उसके पास तक जाते भी थे तो उसकी विषम ज्वालासे पीड़ित होकर वे जमीन पर गिर पड़ते थे और उनमें बहुतोंको मूर्जा तक आ जाती थी । कोई बिचारे कहते थे कि हमें द्रोपदी नहीं चाहिए; किन्तु हम सकुशल अपने घर पहुँच जायें तो बड़ी खुशी मनायें
और आनंद-पूर्वक दीन, अनाथ और दरिद्रोंको दान दें । कोई कहते थे कि हम तो अपने घर जाकर अपनी स्त्रियोंके साथ ही-क्रीड़ा, मनोविनोद करेंगे, हमें ऐसी सुन्दरी द्रोपदी नहीं चाहिए, जिसके पाछे प्राणोंके ही लाले पड़ जायें।
और जिन राजोंके कामिनियाँ न थीं वे कहते थे हमें ऐसे प्राणोंके घातक विषय-सुखकी चाह नहीं है । इससे तो हम घर जाकर कुछ समय ब्रह्मचर्यसे रहें यही परम उत्तम है । देखिए एक तो यह अपने रूपसे ही लोगोंके प्राण लिये लेती है और उस पर साँपके विषकी तीव्र ज्वाला जैसे कामके वेगसे मारे डालती है । यह कन्या नहीं है, किन्तु कहना चाहिए कि महान् विष ही है। ___यह देख कर मदके आवेशमें आ दुर्योधन बोला कि मेरे सिवा इस राधावेधके लिए दूसरा और कौन समर्थ हो सकता है । इस राधाके मोतीको तो मै ही वेबॅगा । इतना कह कर वह नेत्रोंको लाल करके उठा और धनुषके पास पहुंचा; परन्तु उस धनुषसे उत्पन्न हुई ज्वालासे पीड़ित होकर वह भी उसके पास ठहर न सका और असमर्थ होकर भूमि पर गिर पड़ा और बड़ी कठिनतासे उठ कर अपनी जगह पर आकर बैठा । इसी प्रकार कर्ण आदि और और राजा भी उसकी ज्वालाको न सह सकनेके कारण मानको छोड़ कर अपने अपने स्थान पर चुपचाप आ बैठे । जब कोई भी उस धनुषको न चढ़ा सका तब युधिष्ठिरने अपने छोटे भाई अर्जुनसे उसके चढ़ानेके लिए कहा । वे बोले कि जान पड़ता है इन राजोंमेंसे कोई भी यह धनुष नहीं चढ़ा सकता है । इसके लिए ये सब असमर्थ हैं, अतः तुम उठो और इस धनुषको चढ़ाओ । तुम्हारे सिवा इस धनुषको और कौन ऐसा है जो सिद्ध करेगा । युधिष्ठिरके वचनोंको सुन