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पाण्डव-पुराण। ही शोभायुक्त थी और इन्द्राणीके जैसी देख पड़ती थी । वह रूपलावण्यकी खान थी। उसके सब ओर उसकी सखियाँ थीं । धायके हाथमें उसने मणियोंकी माला दे रक्खी थी । वह निर्मल थी और अपने कटाक्षपात द्वारा उन राजोंके मनको मोहित करती थी । ऐसी मनमोहिनी मूर्तिवाली द्रोपदीको उन राजोंने ज्यों ही देखा कि उनकी कामाग्नि धधक उठी । वे मन-ही-मन बोले कि ऐसी सुन्दरी रूप-सौन्दर्यकी सीमा दूसरी स्त्री तो हमने आज तक नहीं देखी । इसका रूप-सौन्दर्य संसार भरसे बढ़ा चढ़ा है।
इस समय वहाँ जितने राजा थे सवकी विचित्र ही चेष्टा हो रही थी । कोई अपने मित्रके साथ बातें करता हुआ द्रोपदी पर मंद कटाक्ष फेंक रहा था । कोई मंद मुसक्यानसे अपने पानके रंगसे लाल हुए दाँतोंकों दिखाता हुआ दाँतोंके नीचे पान दवा कर उसे बड़े जोरसे चवा रहा था। कोई पाँवके अंगूठेके द्वारा सिंहासन पर लिख सा रहा था । कोई दाहिने पॉवको बायें पॉच पर रक्खे हुए था । कोई जंभाई ले रहा था । कोई सिर पर मुकुट रख रहा था । कोई अपने हाथोंके कड़ोंको इधर उधर घुमा रहा था, जिससे उसकी भुजायें ऐंठती सी थीं । कोई हाथसे मूंछोंको मरोड़ता था। कोई अंगूठियोंकी कान्तिसे प्रकाशित हाथोंको ऊँचे उठा उठा कर दिखाता था। इस प्रकार विचित्र चेष्टायें करते हुए वे लोग वहाँ बैठे हुए थे । उसी समय वीणा, मृदंग, बाँसुरी, नगाड़े आदिकी आवाज हुई, जिससे सब दिशायें गूंज उठीं।
इसके बाद उस मिष्टभाषिणी सुलोचना धायने जो कि वरमाला हाथमें लिये हुए थी, वहाँ बैठे हुए राजोंका द्रोपदीको परिचय कराया । वह बोली बेटी, देखो ये अयोध्याके राजा हैं। ये सूर्यवंशके शिरोमणि हैं। इन्द्रके जैसी विभूतिके धारक हैं। पण्डित लोग इनका आश्रय लेते हैं । इनका नाम सूरसेन है । ये शत्रुपक्षके विघातक बनारसके राजा हैं । ये सुवर्णकी सी कान्तिवाले चंपापुरीके राजा कर्ण हैं । ये हस्तिनापुरके राजा दुर्योधन हैं । बड़े बुद्धिमान हैं। और यह इन्हींका भाई दुश्शासन है । यह शत्रुओंका नाश करनेवाला दुर्मर्षण राजा है । देखो, ये यादव-वंशीय राजा हैं । ये मगध देशके अधिपति हैं । ये जलंधर देशके राजा हैं । ये वाल्हीक देशके राजा हैं । पुत्री, मैं नहीं कह सकती कि इन राजों से कौन धनुषको उठा कर बाणके द्वारा राधावेध .