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________________ सोलहवाँ अध्याय । एक नैमित्तिकसे पूछा कि मेरी कन्याका वर कौन होगा । नैमित्तिकने कहा कि राजन, माकंदी पुरीमें आकर जो वलवान पुत्रष गांडीव धनुष चढावेगा वही पुण्यशाली, श्रीमान् और परमोदयशाली तुम्हारी 'कन्या और द्रोपदीका वर होगा । यह सुन कर कुंदके समान यशवाला वह विद्याधर गांडीव धनुष और अपनी कन्याको लेकर माकन्दी पुरीमें आया और वहॉ द्रुपद राजाके पास जाकर उससे उसने कन्याके सम्बन्धकी सारी वात कह दी, और साथ ही उस स्पष्टवक्ताने द्रुपद्रको वह धनुष भी दे दिया। इसके बाद द्रुपदने अति शीघ्र एक सुन्दर मंडप तैयार करवाया । उसमें सोनेके खंभे लगे हुए थे और सोनेका ही तोरण बांधा गया था । उस पर मुक्ताफलोंसे विभूषित चॅदोवे तने हुए थे । भाँति भॉतिके चित्रोंसे सुशोभित सोनेकी उसकी भी थीं । उस पर इतनी पताका फहरा रही थीं कि उनसे सारा गगन-मंडल लॅक गया था । वह नगरके जैसा दीख पड़ता था । उसमें बहुंतसी गलियाँ बनी हुई थी । उसके ठीक वीचमें एक ऊँची वेदिका वनाई गई थी । दीप्तिशाली सोनेके पायोंके उसमें बहुतसे तख्त पड़े हुए थे। वह बहुत ही सुन्दर आकारका था और भाँति भौतिकी भोग-सम्पतिका दाता था। ___ स्वयंवरके समय कर्ण, दुर्योधन आदि यादव, मगघाधीश, जालंधर, और कौशल आदिके सब राजा आये और वे महान रूप-सौन्दर्यशाली मंडपमें आकर विराजे । ब्राह्मण-घेषमें पाँचों पांडव भी यहीं माकन्दी पुरीमें ठहरे हुए थे । इसी समय द्रुपद और सुरेन्द्रवर्द्धन विद्याधरने मेघके शब्दको भी जीतनेवाली घोषणा करवाई कि जो कोई गांडीव धनुष चढ़ा कर राधावेध करेगा वही पुण्यवान इन दोनों कन्याओंका वर होगा । कन्याओंकी यह प्रतिज्ञा-घोषणा सुन कर कर्ण आदि सव राजा आकर उस धनुषको देखने लगे । वह इतना कान्तिशाली था कि उसके तेजको वे लोग सह न सके । उसे फिर छूने और चढ़ानेके लिए तो उनमें शक्ति ही कहाँ थी। इसी समय अनेक प्रकारके गहनोंसे विभूषित और रेसमी ओढ़नीसे अपने शरीरको ढंके हुई द्रोपदी मंडपमें आये हुए राजोंको देखनेकी इच्छासे वहाँ आई । वह बारीक कंचुकीसे प्रच्छन्न कुचकुभोंके भारसे युक्त थी और अपने नूपुरोंके रण-झण शब्दसे रतिको भी जीतती थी। उसकी नासाके अग्रभागमें मुक्ताफलोंसे जड़ी हुई सोनेकी सुंदर नथ सुशोभित थी । तात्पर्य यह कि इस वक्त वह अपूर्व
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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