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________________ २४४ पाण्डव-पुराण। जड़ जैसा स्थिर था, वीर्यशाली था, धीरज-धारी था और शत्रुओंको जीतनेवाला था। वह स्वयं किसीसे नहीं जीता जाता था । उसकी मियाका नाम भोगवती था । वह वास्तवमें भोगवती ही थी---भोगोंकी खान थी । भाँति भॉतिके मनोहर भोगोंको भोगती थी। वह आभूषणोंसे खूब सजी हुई थी। द्रुपद्रके कई पुत्र थे। वे सुवर्णके समान कान्तिवाले थे। उन्होंने अपने पराक्रमसे सबं दिशाओं पर अधिकार जमा लिया था । वे इन्द्रकी नाँई मनोहर थे । उनके नाम धृष्टद्युम्न आदि थे। इनके सिवा उसके एक पुत्री भी थी। उसका नाम द्रोपदी था । वह उत्तम लक्षणोंवाली थी और अपने सुन्दर रूप तथा गुणोंसे इन्द्राणीको भी जीतती थी। अपनी चालसे वह हंसीको और नखोंसे तारा-गणको जीतती थी । चरणोंसे कमलोंको और जॉघोंसे केलेके स्तंभोंको जीतती थी । जघनोंसे कामक्रीडाक घरको और नितम्बोंसे सोनेकी शिलाको जीतती थी । नाभि-मंडलसे भँवरोंवाले सरोवरको और वक्षःस्थलसे कैलासके तटको जीतती थी । जिन पर हार लटक रहा था ऐसे कुचोंके द्वारा वह सॉपोंसे वेष्टित कुंभोंको जीतती थी। हाथोंके द्वारा 'कल्पवृक्षकी शाखाओंको, मुखसे चाँदको और स्वरसे कोकिलोको जीतती थी । आँखोंसे मृगीको, नाकसे वाँसकी सुंदर वाँसुरीको और ललाटसे अष्टमीष्टे चंद्रमाको जीतती थी। अपने सुंदर केशपाससे वह भुजंगको जीतती थी। वह कला-कौशलमें पूर्ण कुशल थी। उसका कटिभाग कृश था और स्तन गोल और कठिन थे। एक दिन द्रुपदने देखा कि पुत्री अव युवती हो गई है, अत: इसका जल्दी विवाह कर देना चाहिए । यह सोच कर उसने अपने मंत्रियोंको बुलाया और उनसे इस सम्बन्धमें सलाह ली । उन्होंने भी अपनी अपनी योग्यता और बुद्धिके अनुसार सलाह दी और बहुतसे राजोंके नाम कहे और कहा कि इनमेंसे राजन्, आप जिसे पसन्द करें, उसीके साथ द्रोपदीका ब्याह कर दें । मंत्रियोंकी इस सम्मतिके अनुसार राजाने भी किसी किसी कुमारकी ओर दृष्टि दौड़ाई पर फिर याचना भंग होनेके भयसे उसने यही निश्चित किया कि स्वयंवरकी तैयारी करके अति शीघ्र एक सुन्दर स्वयंवर-मंडप बनवाया जाय । स्वयंवरके विना ठीक नहीं होगा। किसीसे वरकी याचना की गई और उसने मंजूर न की तो उल्टा दुःख ही होगा। इसके बाद राजाने दूतोंको बुलाया और उन्हें निमंत्रण पत्र देकर कर्ण और दुर्योधन आदि राजोंको पास भेज दिया। खगाचल पर्वत पर एक विद्याधर राजा रहता था। उसका नाम सुरेन्द्रवर्धन था। उसे सब साधन प्राप्त थे। उसके एक कन्या थी । एक समय उसने
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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