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सोलहवाँ अध्याय।
ठिकाना ही नहीं रहा । राजन्, उस विद्याके ऐसे दीन वचनोंको सुन कर मैंने उन कृती मुनिराजसे पूछा कि प्रभो, अब इस विद्याका कौन नीतिवान् विनयी पुरुष पति होगा । मुनिराजने उत्तर दिया कि यक्ष, इसका स्वामी अब महापुरुष भीम होगा । यह सुन कर मैंने फिर मुनिराजसे पूछा कि भीम कौन है ? और वह कैसे जाना जायगा ! इसके उचरमें संसारको आनन्द देनेवाले वे मुनिराज प्रमोदके साथ यों कहने लगे
इसी भरत क्षेत्रमें एक हस्तिनापुर नाम नगर है । वहाँका राजा पाड्ड था। वह गुणोंका समुद्र था । भीमसेन उसीका पुत्र है । और वह शुद्ध परिणामी तीन लोकमें सुन्दर इस चैत्यालयकी वन्दनाके लिए अपने भाइयों सहित अति शीघ्र ही यहॉ आवेगा । स्पष्ट वात यह है कि जो कोई यहाँ आकर इस जिनालयके किवाड़ोंको खोलेगा वही इस गदाका स्वामी होगा । यह सुन कर वह विद्याधर राजा तो विद्याको समझा कर मुनिके पास दीक्षित हो गया और मैं तभीसे इसकी रक्षा करता हुआ और आप लोगोंकी प्रतीक्षा करता हुआ यहीं ठहरा हुआ हूँ। आज आप लोगोंको आया देख कर मुझे बड़ा भारी संतोष हुआ
और मुनिके कहे अनुसार मैंने भीमको यह गदा दी । इसके बाद उस यक्षने वस्त्र, आभूषण आदिके द्वारा उनकी पूजा-भक्ति की और अन्तमें उनके गुणों को याद करता हुआ वह अपने स्थानको चला गया।
___ इस प्रकार पांडव दक्षिणके देशोंमें विहार करते और धर्मके फलको भागते हुए हस्तिनापुर जाने को तैयार हुए। वहॉसे चल कर वे धीरे धीरे मार्गमें पड़नेवाली माकन्दी नाम नगरीमें आये । वह देवतों जैसे सत्पुरुषोंका और देवागनाओं जैसी ललनाओंका निवास थी, अतः स्वर्गपुरी सी जान पड़ती थी । उसके चारों ओर एक सुन्दर विशाल कोट था । जैसे स्त्रियाँ मॉगमें उत्तम लाल वर्णका सिंदूर भर कर शोभा पाती हैं वैसे ही उसमें भी उत्तम वर्णके लोग भर रहे थे, अत: वह भी अतीव शोभा पाती थी । तात्पर्य यह कि वह सुंदर सजावटसे ऐसी जानी जाती थी मानों स्वर्गपुरी ही नीचे उत्तर कर यहाँ आ गई है । वहाँ पहुँच कर वे ब्राह्मण वेष-धारी पांडव एक कुंभारके घर गये और वहाँ ठहर गये। इसके बाद वे पवित्र और लोकोंको पालनेवाले पंडितोंसे परिपूर्ण उस पुरीको देखने के लिए निकले । उसकी शोभा देख कर वे बडे संतुष्ट हुए; जैसे कि स्वर्गपुरीको देख कर अमर-गण संतुष्ट होते है। वहाँका राजा द्रुपद था। वह वृक्षकी