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________________ सोलहवाँ अध्याय । सोलहवा अध्याय । रन शीतलनाथ भगवानकी मैं स्तुति करता हूँ जो पूर्ण शीलके स्वामी हैं, जिनका अतीव मनोहर शरीर है, जो जीवोंको शान्ति-दाता हैं, उत्कृष्ट लक्ष्मीके स्थान हैं और जो श्रीक्षके लक्षणसे युक्त है। __इसके बाद युधिष्ठिरने उस यक्षसे पूछा कि यक्षराज, तुमने भीमके लिए जो गदा दी है उसके देनेका क्या कारण है । इसके उत्तरमें उस उत्तम पक्षवाले और शासन-कुशल यक्षने कहा कि राजन्, सुनिए, मैं गदा देनेका कारण वताता है। . इस भरत क्षेत्रके वीचमें एक अति ऊँचा विजयाई नाम पहाड है । वह पूर्व और पच्छिमकी ओरको लम्वा है और दोनों ओरके कोनोंसे लवण समुद्रको छूता है । अतः वह ऐसा जान पडता है मानों भरत क्षेत्रको नापनेके लिए मान-दंड ही है । वह पञ्चीस योजना ऊँचा है, पचास योजनका उसका विस्तार है और सवा छह योजनकी उसकी जड़ है । उसकी दो श्रेणियाँ हैं । एक दक्षिण श्रेणी और दूसरी उत्तर श्रेणी । दक्षिण श्रेणीमें रथनूपुर नाम एक नगर हैं । उसका स्वामी मेघवाहन था । उसने रणमें बहुतसे वैरियों पर विजय पाई थी । उसकी प्रियाका नाम प्रीतिमती था । वह राजाको बहुत प्यारी थी और वह भी राजा पर पूर्ण प्रेम रखती थी। इन दोनोंके एक पुत्र था । उसका नाम था धनवाहन | धनवाहनके बहुतसे अच्छे अच्छे वाहन थे । वह विद्या साधनेमें दत्तचित्त था। उसने अपने पराक्रमसे बहुतसे शत्रुओंको तो वशमें कर लिया था और अपने राज्यको पढ़ानेकी इच्छासे वाकी शत्रुओंको जीतनेको वह तैयार था । इसी लिए वह गदा देनेवाली विद्या साधनेके लिए विंध्याचल पर्वत पर गया था। वहाँ उसने बहुत दिनों तक विद्या साधी । उसके फलसे -उत्तम विधा-साधनसे सिद्ध होनेवाली और तीन लोकमें प्रसिद्ध यह गदा उसे मौत हुई । इसी समय आकाश मार्गसे देव जा रहे थे । उनको जाते हुए देख कर विद्याके वैभवसे युक्त उसं विधाधरोंके राजाने कहा कि ये देव कहाँ जा रहे है और किस लिए जा रहे हैं। इस पर एक देवने कहा कि सुनिए, मै आपको सर्व हाल कहता हूँ। पामाव-पुराण ३१
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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