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________________ २४० क्या कहें हम आज कृतार्थ हो गये, मनोहर और मान्य हो गये-- मानों हम आज ही मोक्षको प्राप्त कर चुके । इस प्रकार जिनदेवकी स्तुति कर तथा उन्हें नमस्कार कर वे जिनालय से वाहिर निकले । वे बाहिर आकर वहाँ बैठे ही थे कि इतनेमें वहाँ श्री मणिभद्र नामका यक्ष आया और उनको नमस्कार कर बोला कि नरोत्तम, आप बड़े विवेकी हैं, श्रेष्ठ हैं और गुण सम्पदासे युक्त हैं। अतः मैं आपको धन्यवाद देता हूँ । हे मान्य पुरुष, आपने इस जिनालयके किवाड़ खोले हैं, मैने इसीसे जान लिया है कि आप बड़े पुण्यात्मा जीव हैं, और ऐसा ही एक योगिराजने कहा था । इतना कह कर उस यक्षने महान धीरजधारी, शूरवीर भीमको शत्रु विघातनी नाम एक गदा दी, जिसके नामको सुनते ही भीषण युद्धके लिए उद्यत शत्रु भी रणांगण छोड़ कर भाग जाते हैं; जैसे कि दवाईसे मनुष्योंके रोग भाग जाते हैं । इसके बाद उस यक्षने रत्नोंकी बरसा कर भक्ति से प्रेरित हो उन पाँचों ही पांडवोंको वस्त्र, आभूषण और मणि- मुक्ता वगैरह भेंट दिये । एवं उसने उन्हें निर्दोष विद्या भी दी । उस निर्दोष विद्या और शत्रुघातकी गदाको पाकर पांडव निर्भय होकर ठहरे । पाण्डव-पुराण । ~^^^^^^ inn^^^^^^ woonnn ann WORK 1 वह भीम योद्धा जयको प्राप्त हो, जो भाँति भॉतिकी लीलासे युक्त गज गामिनी ललनाओं को पाकर सांसारिक सुखकी सीमा पर पहुँच गया; जो रणमें शत्रुओं पर विजयको लाभ कर चुका; जिसकी राज-गणोंने वन्दना - स्तुति की और जो शुद्ध पक्षवाला, सबको हर्ष देनेवाला और निर्दोष था । एवं जिसने सैकड़ों युद्ध करके निशाचर और विद्याधरको भय चकित कर - गर्व-रहित कर --- हिडंवा नामकी विद्याधर - कन्याको पाया, हाथीका मद उतारा, दिशानन्दाको ब्याहा और जिनालयके द्वारके किवाड़ोंको खोल कर गदाको प्राप्त किया वह विपलोदर भीम सदा जयको पावे |
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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