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पन्द्रहवाँ अध्याय |
पर ही सबका वश चलता है, बलवानों पर नहीं । क्योंकि बलीका सामना करनेके लिए कुछ ताकतकी जरूरत होती है ।
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इसके बाद क्रोध से उद्धत हुए वे दोनों ही खम ठोक कर भिड़ गये; और आकाश तथा पृथ्वीको उन्होंने गुँजा दिया। वे कभी मस्तकके द्वारा और कभी पॉवोंके द्वारा एक दूसरे पर महार करते थे; तथा हाथोंकी कुहनियोंसे एक दूसरेका सिर फोड़ते थे । इस समय वे दोनों ही दयासे कोसों दूर थे कोई भी किसी पर तीव्र प्रहार करनेमें कसर न रखता था । दोनों ही निर्दय भावसे एक दूसरे पर टूटते थे । यमके पुत्र जैसे उन दोनों में बड़ा भारी भीषण युद्ध हुआ । आखिर निर्भय भीमने उस पापी, नरभक्षक, दुष्ट और क्रोधसे कॉप रहे नर-पिशाचको तृणके जैसा निःसत्व कर उसके सिरमें अपने भुज- दण्डका एक ऐसा भीषण प्रहार किया कि वह विल्कुल ही हतप्रभ हो गया । इसके बाद ही वह फिर न उठ खड़ा हो इसके लिए क्रोधमें आकर बली भीमने उसकी पीठमें एक ऐसी जोरकी ळात मारी कि जिससे वह अधम जमीन पर लौट गया । भीमने उसका तव भी पिण्ड न छोड़ा और वह उसके दोनों पॉव पकड़, उसे आकाशमें चारों ओर घुमाने लगा । जान पड़ता था कि वह उसे जमीन पर पछाड़ना ही चाहता है । तब वह नर-पिशाच बड़ा डरा और भीमके हा हा खाने लगा । यह देख भीमने उसे सत्र लोगों के सामने जो कि उन दोनोंके युद्धको सुन कर वहाँ अति शीघ्र आ गये थे और खड़े खड़े क्रोधसे उद्धत हुए उन दोनोंका युद्ध देखते थे, अपना सेवक बना कर छोड़ दिया; और उससे आगे के लिए मनुष्य घात न करनेकी प्रतिज्ञा करवा ली । तात्पर्य यह कि भीमने उसका सारा मद उतार कर उसे सीधा साधा मनुष्य बना कर छोड़ दिया । उसको इस तरह निर्मद हुआ देख कर दर्शक लोगोंको बड़ी खुशी हुई और वास्तव में खुशी होने की बात ही थी । उस खुशी के मारे वे लोग भीमका जय जयकार करने लगे तथा भक्तिसे स्वाभिमानी भीमकी मुक्त कंठसे मशंसा करने लगे कि आप अवश्य ही बड़े बड़े पुरुषों द्वारा मान्य है, संसारको आनन्दित करनेवाले हैं और संसारको अपने निर्मल यशसे पवित्र करते है । अतः हे सज्जन आपकी जय हो । देखिए हम लोगों को यहाँ जीना भी मुश्किल पड़ रहा था; परन्तु महाभाग, आपके प्रसादसे अब हमें कोई भी खटका नहीं रहा । अतः अब हम बेफिक्र होकर अपने जीवनको आनंद-चैन से बिता सकेंगे । तात्पर्य यह है कि आजसे हम सब अपनी नींद सोयेंगे और अपनी ही नींद
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