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पाण्डव-पुराण।
उठेंगे। हमें अब कुछ चिन्ता नहीं है। कौन नहीं जानता कि जब मेघोंकी कृपा होती है तब तृण वगैरह सव खूब हरे भरे रहते हैं । वे जरा भी नहीं मुरमाते हैं। इस प्रकार उन दक्षोंने भीमकी खूब स्तुति की और भेटमें उसे अनन्त धन-सम्पदा दी। और है भी यही बात कि भक्त लोग जिसके ऊपर मुग्ध हो जाते हैं उसके लिए वे फिर कोई वात उठा नहीं रखते-~जो कुछ सम्पत्ति उनके पास होती है वह सब देनेको वे तैयार हो जाते हैं।
इसके बाद जिनभक्त परमोदयशाली पांडवोंने वह सब सम्पत्ति जो कि उन्हें लोगोंने भेंटमें दी थी, श्रुतपुरमें ही एक विशाल जिनालय बनवानेमें लगा दी। इसी वाचमें वर्षाका आरम्भ हो गया और मेघोंने धारासार जलवर्षा कर नदी, पर्वत और पृथ्वीको जल-मय कर दिया । ऐसा भान होता था मानों - सूरजके तापको दूर करनेके लिए ही मेघोंने वह धारासार वर्षा की है । अपने अपने वैरीको नष्ट करनेके लिए सभी महान् पुरुष तैयार होकर प्रयत्न करते हैं । इस समय इतनी वर्षा हुई कि जलके मारे मार्ग भी नहीं देख पड़ता था; और पानी-ही-पानी दीखता था । जान पड़ता था मानों लोगोंको सुखी करनेके लिए पृथ्वी पर मेघ ही आ गये है। वर्षा ऋतुको आ गई जान कर पांडव वहीं ठहर गये और उन्होंने धर्म-ध्यान पूर्वक वरसातके चार महीने वहीं विताये । वहाँ वे वर्षा ऋतुके योग्य महोत्सवोंको करते हुए अपने निजके बनवाये जिनालयमें रहते थे ।
जव चौमासा पूरा हो गया तब वे वहॉसे चले और पृथ्वीको लाँघते हुए कुछ समयमें कुन्ती-सहित उस पवित्र और प्रसिद्ध चंपापुरीमें आये जहाँ कि कर्ण राजा था। वहाँ आकर वे सुन्दर सुन्दर घों और चक्रोंसे सुशोभित एक कुंभारके घर ठहरे । वहाँ विनोदमें आकर भीम स्थास, कोश, कुशूल वगैरह कैसे बनते हैं यह देखने के लिए कुंभारका चाक फिराने लगा एवं हंसी-विनोदमें ही उसने दण्डको हाथमें ले उस कुंभारके ढक्कन, मटके, कॅड़े आदि बहुतसे वर्तन फोड़ डाले। उनके फूटनेकी आवाज सुन कर निर्मलमना कुन्तीने कुछ कोष और भय दिखा कर भीमसे कहा कि भीम, तुम बड़े चंचल हो । तुमने यह क्या किया । तुम जहाँ जाते हो वहीं अनर्थ करते हो। तुम बड़े दुष्ट हो । तुम्हारे पास शिष्टाचारकी तो वू भी नहीं है । तुम्हारे हाथों में भी चंचलताका बड़ा दोष है। भाई, तुम तो अपराधके सिवाय दूसरा काम करना जानते ही नहीं । माताके ऐसे उलाहनेको सुन कर भीम चुपका हो गया। और माताकी मर्यादाके भयसे वह उसी समय वहाँसे चल दिया।