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पन्द्रहवाँ अध्याय ।
२३३. कर यह निश्वय किया कि इसके लिए वारी बारीसे हर रोज एक मनुष्य खानेको देना चाहिए । बस, इसी नियमके अनुसार अपनी अपनी बारी पर • सब लोगोंने उसे घर घरसे एक एक मनुष्य प्रति दिन खानेको दिया और धीरे धीरे आज वारह वर्ष ऐसे ही बीत गये । पापयोगसे आज मेरे प्यारे बच्चेकी बारी है और इसीसे दुःखी होकर में रो रही हूँ । देवी, मेरे रोनेका दूसरा और कोई निमित्त नहीं है । नगरके लोग आज ही एक गाड़ी में मिठाई आदि भर कर और उसके वीचमें मेरे प्यारे पुत्रको वैठा कर उस अधर्मीकी भेंट देंगे तथा साथमें एक भैसा भी देंगे । माता, मेरे यह एक ही तो प्यारा आँखों का तारा सर्वस्व पुत्र है और यही आज कालके गाल में पहुँचाया जा रहा है । इसके विना हाय अव मैं क्या करूंगी और कैसे अपना जीवन बिताऊँगी । पुत्रके वियोगका चित्र मेरी आँखोंके सामने खिंच रहा है और वह मेरी छाती चीरे डालता है-हृदयमें वज्रके जैसी चोट कर रहा है । बताइए अब मैं कैसे और किसके भरोसे धीरज धरूँ । मुझे तो कोई उपाय ही नही सूझ पड़ता ।
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यह सुन कर कुन्तीका हृदय दयासे भींग गया । वह मिष्टभाषिणी उसके लिए सुखका उपाय सोचती हुई उसे शान्ति देकर बोली कि वणिग्वधू, तुम sa | सवेरा होने दो। तुम्हारे पुत्रकी वारी आने पर मैं उसकी रक्षाका उपाय करूँगी । सुनो, मै उस भूतकी वलिके लिए अपना ' अतीव रूप- शाली पुत्र भेज दूँगी । तुम्हारा पुत्र आनंद- चैनसे अपने मंदिरही में रहेगा । तुम्हें और उसे कोई चिंता न करनी चाहिए । उस वैश्य भार्या को इस तरह समझा कर कुन्ती चहाँ गई जहाँ कि भीम बैठा हुआ था । उसे आती देख कर भीम उठ खड़ा हुआ और उसने उसके चरण कमलों में प्रणाम किया । इसके बाद कुछ देर बैठ कर सबके मनको अपनी ओर झुकानेके लिए कुन्तीने भीमको उस दुष्ट वक राजाका सारा हाल कह सुनाया । वह बोली कि भीम जरा शान्तचित्तसे मेरी बात पर ध्यान दो । इस बेचारी वैश्यपत्नीके एक ही तो पुत्र है और उसीकी लोग आज नरभक्षी बक राक्षसके लिए बलि देंगे । पुत्रके विना यह बेचारी जन्म-भर के लिए दुःखिनी हो जायगी । इसे अपना जीवन भी घोश-मय हो जायगा । देखो, आज रातमें तुम लोग इसके घर बड़े आरामके साथ ठहरे हो । इसके सिवा इसने तुम्हारा खूब अतिथि सत्कार किया है, वस्त्र, जल आदि द्वारा तुम्हारी पाहुनगत की है । अस्तु, जब कि तुम लोग परोपकारी हो और तुम्हारा यही
पाप-पुराण ३०