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पाण्डव-पुराण।
कि वह हमेशा मांसके संबंधमें ही अपनी सारी बुद्धि खर्च किया करता था। उसका रसोइया उसे सदा पशुका मांस पका-पका कर देता था और वही नीच निर्दय उसके लिए पशुओंका घात करता था । लेकिन एक दिन कहींसे भी जब उसे पशुका मांस न मिला तब वह दुष्ट मांसकी खोजमें नगरसे वाहिर निकला और मसानभूमिसे किसी गढ़े से एक मरे हुए बच्चेको खोद कर ले आया । एवं उस पापीने उस बच्चेको मसाला आदि डाल कर बड़ी चतुराईसे पकाया और उसका मांस वक राजाको खिला दिया । राजाको वह मांस बहुत ही अच्छा स्वादु मालूम पड़ा । अतः उस मांस लोलुपीने बड़े भारी आग्रहके साथ रसोइयेसे पूछा कि पाककार, तुम ऐसा अच्छा सुस्वादु मसि कहाँसे लाये । मैंने तो कभी ऐसा उत्तम मांस खाया ही नहीं। यह सुन रसोइया अभयदान मॉग कर डरता डरता बोला कि प्रभो, माफ कीजिए, यह मांस मनुज्यका है। आज कहींसे भी जब मुझे पशुका मांस न मिल सका तव मैंने इसे ही चतुराईसे पका कर आपको खिलाया है ।
यह सुन कर राजा बोला कि प्रिय, यह मांस मुझे बहुत ही अच्छा मालूम हुआ है और इससे मुझे वृप्ति हुई है । इस लिए अवसे तुम मुझे मनुष्यका ही मांस खिलाया करो । राजाकी इतनी सम्मति पाकर वह रसोइया और भी निडर हो गया । और अब वह हमेशा मनुष्यके मांसकी खोजमें गली-कूचोंमें जाकर नगरके बच्चोंको मिठाई आदि बाँटने लगा । मिठाई लेकर सब बच्चोंके चले जाने पर जो बच्चा पीछे रह जाता उसे पकड़ कर वह उसका गला घोंट देता और उसका मांस राजाको खिला देता । ऐसा दुष्कृत्य वह रोज रोज करने लगा। ___उधर धीरे धीरे जब नगरके बच्चे प्रति दिन कम होने लगे तब सारे नगरमें खलबली पड़ गई और लोगोंने छुप-छुप कर बच्चोंके घातकको देखना खोजना आरम्भ कर दिया। इसके थोड़े ही दिनोंमें वह रसोइया पकड़ा गया। लोगोंके पूछने पर उसने साफ साफ कह दिया कि मेरा तनिकसा भी इस दुष्कृत्यमें अपराध नहीं है । किन्तु मुझसे राजाने जैसा करवाया वैसा ही मैंने किया। इस पर सब लोगोंकी सम्मतिसे राजा वक राजगद्दी परसे उत्तार दिया गया। इसके बाद बक वनमें रह कर मनुष्योंको मार कर खाने लगा। धीरे धीरे जब उसने नगरके बहुतसे मनुष्योंको मार खाया तब नगरके लोगोंने पिल कर विचार