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पन्द्रहवाँ अध्याय ।
२३१ पर्याय सदा ही पवित्र है; क्योंकि तीर्थंकर, नारायण वगैरह उत्तम उत्तम पुरुष
सब इसीमें उत्पन्न होते है और इसे पवित्र बनाते हैं । फिर तू क्या कह रहा है, + जरा हित-अहितको भी विचार । और सुन, यदि तुझमें कुछ ताकत हो, तुझे
अपने असुरपनेका अभिमान हो तो आ हमारे साथ युद्ध कर । हम अभी है। तुझे तेरे असुरपनेका फल चखाये देते हैं । बाद वे दोनों भीम और भीमासुर अपने अपने बाहु युगलको ठोक ठोक कर मदोद्धत मल्लोंकी नॉई युद्ध करनेको तैयार हो गये । इन दोनों के पॉवोंके कठोर आघातसे पृथ्वी काँपती थी । इनके वज्र जैसे भयंकर शब्दोंको सुन कर सिंह वगैरह वनजन्तु भी अपने प्राणोंको लिये इधर उधर भाग रहे थे और दुःखी हो रहे थे । इन दोनोंका बडी देर तक घनघोर युद्ध हुआ; परन्तु आखिरमें अपनी मुष्टिके प्रहारसे भीमने भीमासुरको निर्मद कर दिया जैसे सिंह हाथीका मद उतार कर उसे निर्मद कर देता है । इसके बाद भीमासुरने भीमके चरणोंमें प्रणाम किया और उसकी दासताको मंजूर कर वह अपने स्थानको चला गया | इधर पांडव भी अति शीघ्र उस वनसे चल दिये । ये आगे जानेको बहुत ही उत्सुक हो रहे थे।
पांडव वहॉसे चल कर धीरे धीरे श्रुतपुर नामके एक नगरमें आये और यहाँ उन्होंने एक जिनालयमें जा भगवानकी प्रतिमाओंका पूजन किया और भक्तिभावसे उनकी स्तुति की । वहाँ कुछ देर ठहर कर वे गनमे रहनेके लिए एक वणिकके घर पर आये वे बहुत थके हुए थे, इस लिए शयन करना चाहते थे । वे उसकी कुटीमें ठहर गये । संकटको हरनेवाले विकट पराक्रमी, पांडव बैठे हुए वहॉके विचित्र जिनालयोंकी वावत कुछ चर्चा कर रहे थे कि इतनेमें संध्या होते ही, उस घरवाले वैश्यकी भार्या महान् शोकसे पीडित होकर अत्यन्त दीनताके साथ विलाप करने लगी । तव दयाल कुन्तीने उसके पास जाकर उसे आश्वासन दिया-धीरज बंधाया और ऑसुओंसे परिपूर्ण नेत्रोंवाली खेदखिन्न उस वैश्यभार्यासे प्रेमके साथ पूछा कि तुम इतना भारी
शोक क्यों कर रही हो ? वैश्यमाय ने कहा कि सुनिए, मैं अपने दुःखपूर्ण ' रोनेका कारण बताती हूँ।
. देवी, इसी श्रुतपुरमें श्रीमान् वक नाम राजा था । वह वगुलेकी नॉई ही धर्म-हीन था; परन्तु प्रजाके ऊपर शासन करनेमें अच्छा प्रवीण था । उसे कारण-वश मांस खानेकी चाट पड़ गई और वह इतनी जबरदस्त