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________________ mmmmmnnnn annan wwwwwww on www पन्द्रहवाँ अध्याय । जाने कैसे उसकी सारी विद्यायें नष्ट हो गई । अतः वह भी विद्या साधनेके लिए यहीं रहता है। वह बड़ा मानी और मुदबुद्धि है । वह मनुष्योंको कष्ट दिया करता है । वह मुझे भी कष्ट देने लगेगा। और हे विक्रमशाली वीर, आपके वचनोंको सुन कर अचिंत्य विक्रमवाला वह पिशाच क्रोधित भी होगा। क्योंकि वह बड़ा भारी क्रोधी है-उसे क्रोध आते देर नहीं लगती । इस लिए जीवनाधार, अब आप कुछ न कह कर मुझे स्वीकार कीजिए। हिडम्बाके इन वचनोंको सुन कर भीमने बजके शब्द जैसी बड़ी भारी गर्जना की, जो कि उस पिशाचके कानोंको फाड़ देनेवाली थी। मदोन्मत्त यमराजकी भॉति मानी भीमात्मा भीम पिशाचको बुलानेके लिए बोला कि हे पिशाचराज, यहाँ आकर अपनी भुजाओंके पराक्रमको दिखाइए, जिसके अभिमानमें आ तुम लोगोंको कष्ट दिया करते हो । भीमके वज्र जैसे महान् निर्घोषको सुन कर यम सदृश और काले मुंहका वह भयानक निशाचर पिशाच भीमके पास आया और किलकारियों मारता हुआ क्रोधसे भीमके साथ लड़नेको तैयार हुआ । उसको देखते ही भीम वोला कि पिशाचेश, अब देर न करो; और जल्दीसे द्वंद्व युद्ध के लिए तैयार हो । रे पशुघातक, तू अपने गर्वको दूर कर दे, नहीं तो अभी तेरे गर्वको खर्व किये देता हूँ।- इसके बाद वे दोनों खूब क्रोधमें भरे हुए और अपने शब्दोंसे पर्वतोंको भी भेद डालनेवाले शब्दोंफो करते हुए एक दूसरेसे लड़ने लगे। वे वज्रके प्रहारसे पर्वतकी नॉई एक दूसरेको जवरदस्त मुष्टिके प्रहारसे गतविक्रम करने लगे । एवं वे मदसे उद्धत हुए पॉवके प्रहारसे पृथ्वी पर एक दूसरेको गिराने लगे । इस तरह उन दोनोंमें खूब युद्ध हुआ। उन दोनोंका युद्ध तो समाप्त ही नहीं हो पाया था कि इस बीचमें वह विद्याधर भी, जो कि विद्या साधनेके लिए वटवृक्षमें रहता था, हिंडबाके पास आकर नाना भूषणोंसे मंडित हिंडवाको पीड़ा देने लगा । वह उससे बोला कि आश्चर्य है हिडवा, मेरे यहाँ होते हुए कोई दूसरा ही तुझे ब्याहे । यह कह उस खेचरने ज्यों ही हिडंवाको पकड़नेके लिए हाथ बढ़ाये त्यों ही भीमने उसे अपने दाहिने हाथके घूसेसे दूर हटा दिया । और उधर पिशाचकी पीठमें एक जोरकी लात मार कर उसे भी नीचे गिरा दिया। परन्तु वह निर्लज्ज पापी पुनः उठ खड़ा हुआ और लगा लड़ने । इतने में दौड़ कर वह विद्याधर भी आ गया, जिसको कि भीमने घूसेसे दूर हटा दिया था और पिशाचको हटा कर स्वयं भीमसे खूब ही मुस्तैदीके साथ लड़ने लगा । इधर इन दोनोंका युद्ध हो रहा था । उधर क्रोधसे लाल
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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