SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 240
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२८ पाण्डव-पुराण । संध्याकार नाम पुर है । वह सायंकालके मेघोंकी रंग-बिरंगी छटासे युक्त है। वहॉ पर तीनों संध्याओंमें आत्म-साधन करनेवाले सिद्ध योगीजनोंका निवास है। वहाँका राजा सिंहघोष है । वह हिडंव-वंशी है और वैरी-रूपी हाथियोंके । लिए सिंह है। उसकी रानीका नाम है लक्ष्मणा । वह भी उत्तम लक्षणोंवाली और मृगाक्षी है । वह इतनी मधुर और प्यारी बोलनेवाली है कि जिसकी वोली सुन कर कामदेव भी जीवित हो जाता है । उसीकी यह रतिको भी जीतनेवाली हिंडवा नाम कन्या है । यह रूप-लावण्यकी सरसी है, शरीरकी कान्तिसे अँधेरेको दूर करती है, मंदगतिसे हथिनीकी चालको जीतती है। यह यौवन अवस्थाको प्राप्त है, कामदेवका निवास स्थान है और इसी कारण सदाकाल कामविकी विडम्बनाको अपने सुन्दर शरीर द्वारा भोग रही है । सब प्रकार शोभा-सम्पन्न यह कन्या एक दिन सुंदर वस्त्राभूषण पहिने अपनी सखी-सहेलियों के साथ गैंद खेल रही थी । इसको खेलती देख कर सिंहघोषने नि-ही-मन विचार किया कि अब यह युवती हो गई है, अत: किसी योग्य वरके जाय इसका अति शीघ्र ही व्याह कर देना चाहिए। वह वर इसीके समान रूपशाली, शक्तिशाली, सुंदर आचार-विचारवाला, अच्छे स्वभावका और प्रीतिपात्र होना शाहिए । यह सोच कर उसने भविष्यके ज्ञाता निमित्तज्ञानीसे पूछा कि हिडंवाका र कौन होगा । उसने विचार कर उत्तर दिया कि जो महान् पुरुष पिशाचहटके नीचे ठहर फर निश्चिन्त हुआ जागता रहेगा वही पुरुष इसका वर होगा। अथवा जो वटवृक्षमें रहनेवाले पिशाचको अपनी भुजाओंके विक्रमसे जीतेगा वह इसका वर होगा। इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है। निमित्तज्ञानीके इन वचनों पर भरोसा करके सिंहघोष राजाने मुझे तभीसे यहाँ रख छोड़ा है । अतः आपको यहाँ जागते हुए देख कर मैं इसे यहीं ले आया हूँ। स्वामिन् , जिसतरह आप धरा, धृति बुद्धि, सिद्धि आदिको ग्रहण किये हुए हैं उसी तरह इसको भी ग्रहण कीजिए । हे बुद्धिमान् धर्मात्मा और हित-अहितके जानकार विद्वन, आपअव देर न कर जल्दी इसे स्वीकार कर, स्वर्गीय सुखोंका अनुभव कीजिए। हिंडंबाने भी संकोच छोड़ कर कहा कि स्वामिन, आप मेरा प्राणिग्रहण करने में विलम्ब न कीजिए और न दिलमें कुछ संदेह कीजिए। यह शीघ्रता इस लिए की जाती है कि इस विशाल वटवृक्षमें एक पिशाच रहता है। वह बड़ा दुष्ट हैं। दूसरे एक विद्याधर एक दिन आकाशमें जा रहा था सो इसके नीचे आते ही न
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy