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पन्द्रहवाँ अध्याय ।
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थी । भाँति भाँति वृक्षोंके फल उसमें उतरा रहे थे । वह अपनी अतीव चंचल लहरोंसे ऐसा जाना जाता था मानों तरंग-रूपी हाथोंके इशारेसे प्यास बुझाने के लिए प्यासे पुरुषोंको ही बुला रहा है । भीमने उसमेंसे जल भर लिया और कमलसे वर्तनका मुॅह ढक वह पवनकी नॉई तेजीसे वापिस गया; परन्तु वह जल्दी न जा सका । युधिष्ठिर इसके पहले से ही प्याससे बड़े पीडित होकर एक वरगद के पेड़के नीचे सो गये थे । उनको सोया देख कर भीमके हृदय में बड़ा विषाद हुआ। वह सोचने लगा कि इस संसारकी विचित्रता बड़ी विषम हैं । वह जीवों को भींत में लिखे हुए चित्रकी नाई केवल देखने में प्यारी लगती है; परन्तु वास्तवमें उसमें कुछ भी तथ्य नहीं है । देखो, इस संसार रूप नाटक में कर्मके उदयकी प्रेरणासे पवित्रात्मा पुरुष भी सुधर नटकी नॉई स्वांग वना बना कर नाचते हैं और दुःखोंका भार सिर पर ढोते हैं । अधिक क्या कहा जावे यहीं देख लो कि जो कौरवोंका स्वामी है और पांडव जिसको अपना राजा मानते हैं, वही आज यहाँ जमीनका विस्तर लगा कर सो रहा है; और जिसे अपने तन वदनकी भी सुध तक नहीं है । वह न देता है और न कुछ खाता पीता ही है दृष्टिपात तक नहीं करता है मेरा इस समय कर्तव्य क्या है
बोलता है, न कुछ लेता
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और तो क्या वह किसीकी ओर
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इस समय । वास्तव
रहा हूँ ।
मुझे कोई उपाय नहीं सूझ पड़ता कि में इस समय कर्तव्यविमूढ़ सा हो
भीम इस प्रकार विचार कर रहा था कि इतनेमें उसके पास अपनी कन्याको साथ लिए एक विद्याधर वहाँ पहुँचा । उस पके हुए बिंवा फलके समान ओठोंवाली, चन्द्र-वदनी, सुलोचना और कठिन तथा गोल कुचोंवाली कन्याको देख कर भीम मन-ही-मन विचारने लगा कि यह लक्ष्मी है या मंदोदरी, सीता है या शची, एवं पद्मा है या रोहिणी । यह कितनी सुंदरी है। इतनेमें उसके चरण-कमलोंमें प्रणाम कर वह विद्याधर राजा वोला कि देव, आप विधि पूर्वक विवाह कर इस कन्याको ग्रहण कीजिए । यह सुन कर भीसने उससे पूछा कि तुम कौन हो ? कहाँसे आये हो ? यह कन्या कौन है और इसके माता-पिता कौन हैं ? एवं तुम यह कन्या मुझे क्यों देते हो ? कृपा कर आप मेरे इन प्रश्नोंका उत्तर दीजिए । फिर विचार करके मैं आपकी बातका उत्तर दूँगा । इस पर विद्याधर बोला यि महाभाग, सुनिए, मैं इस कन्या के चरितको कहता हूँ, जो कि बहुत उत्तम और सुखकर है । राजन, यहाँ एक