________________
२२२
पाण्डव-पुराण।
wwww
सकता है। और माना कि वर निर्दोष भी मिल गया; परंतु कहीं सौतका समागम हो गया तव और भी अधिक दुःखका पहाड़ ही उसके सिर पर आ पड़ता है। क्योंकि स्त्रियोंको जैसा दुःख सौतका होता है वैसा दुःख संसारमें न तो किसीको है, न हुआ और न होगा ही । इसके सिवा यदि स्त्री-पतिकी प्यारी न हुई या चाँझ हुई तब भी दुःख ही है और कदाचित् पतिको प्यारी हुई और वाँझ भी न हुई तो गर्भवती होने पर नौ महीने गर्भका दुःख होता है । यह तो सभी जानते हैं कि गर्भवती स्त्रीको गर्भके भारके मारे सुख नहीं मिलता । इसके बाद भी जव वालवच्चा पैदा होता है तव स्त्रीको इतना दुःख होता है कि उस दारुण दुःखको कोई कह ही नहीं सकता । इसके सिवा स्त्रीको भारी दारुण दुःख पतिके मर जाने पर विधवापनेका भोगना पड़ता है । सच पूछो तो इस ' दुःखके समान संसारमें कोई दुःख ही नहीं है । परन्तु फिर भी जो स्त्रियाँ पतिव्रता होती हैं वे अपने सतीत्वका पालन कर इन कष्टोंको भी ‘सह लेती हैं । तात्पर्य यह है कि स्त्रीजन्मका दुःख कोई कह ही नहीं सकता । परन्तु देखिए तो इन दुष्ट कोंकी लीला जो हम सब विवाह न हुए ही विधवा हो गई । अत एव वास्तवमें यह स्त्री-पर्याय ही धिक्कार योग्य है । और अब सांसारिक भोगोंसे भी हमारी मनसा पूरी हो गई है । अतः इसके द्वारा हमें कल्याण ही करना उचित है । और सुनो कि स्त्री सर्वथा पतिके अधीन होती है और इसी लिए पतिकी प्रसन्नतासे ही उसके धर्म, अर्थ और कामजन्य मनोरथ सिद्ध होते हैं-बह सुखी होती है । अतः पतिके बिना स्त्रीका जन्म व्यर्थ है और उसका निर्वाह भी नहीं हो सकता । इस लिए वहिनो, हम जव संयमका शरण लेंगी तभी हमें सुख होगा; और तरह सुख मिलनेका नहीं । देखो, शील, संयम और सच्चे ध्यानके वलसे और तो क्या हम दारुण दुःखदायी इस स्त्रीलिंगको छेद कर तथा पुरुष जन्म पाकर मुक्तिको भी पा सकेंगी। ___ गुणप्रभाके इन वचनोंको सुन दीक्षा लेनेको उद्यत हुई कोई दूसरी राजपुत्री बोली कि सखी, तुमने जो कुछ भी कहा है वह अक्षरशः सत्य है। उसमें तनिक भी सन्देह नहीं है । यह सुन गुणप्रभा वोली कि सखी, और भी सुनो। देखो, पतिके स्नेहसे होनेवाले सुखकी आशासे ही स्त्री घर-गिररतीमें रहती है
और वास्तवमें अवला स्त्रीके लिए पति ही वल है। फिर उस बलके न होने पर कौन घर-गिरस्तीमें रह कर झंझट भोगेगी । सखी, विना पतिके विधवा स्त्रीकी जनसमाजमें उसी तरह शोभा नहीं होती जिस तरह कि अविवेकी मनुष्य और