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पाण्डव-पुराण ।
सखियोंके साथ खव क्रीड़ा की। एवं उस लज्जा-रूप भूषणसे विभूषित सुन्दरीने झूलेमें झूल कर बहुत आनन्द-विनोद किया ।
___ इसके बाद कमलाने दूरसे एक जिन मन्दिरको देखा । वह बिल्कुल सुधाके जैसा सफेद था, समृद्धशाली था । उस पर सोनेके सुन्दर कलश चढ़े हुए थे। उसे देख कर जिन भगवानकी वन्दना करनेके लिए जानेकी उसकी इच्छा हुई । इसी समय पांडव भी उस जिनमन्दिरके पास आये । उसमें चन्द्रप्रभकी मनोज्ञ प्रतिमाको देख कर और प्रासुक जलसे स्नान कर पवित्र हो, निःसहि निःसहि कहते हुए उन्होंने मंदिरमें प्रवेश किया । भगवानकी पूजा-वन्दना करके वे, पवित्र, परमोदय और विचित्र स्तोत्र-मंत्रोंके द्वारा उनकी भक्तिभावसे स्तुति करने लगे कि जिनेन्द्र, भव्योंके जीवनाधार और जन्म-मरणके दुःखोंको हरनेवाले प्रभो, तुम्हारी जय हो । सदाकाल धर्मका उपदेश करनेको उद्यत, अजय्य
और शत्रु-समूहको जीतनेवाले चन्द्रप्रभ भगवन, आपके कान्तिशाली शरीरकी प्रभा ऐसी है कि उससे आपने चाँदको भी जीत लिया है । और प्रभो, इसमें तानिक भी सन्देह नहीं है, नहीं तो चंद्रमा चिन्हके वहाने भला आपके चरणोंकी सेवा ही काहेको करता । प्रभो, आपकी जय हो । आप केवलज्ञानके स्वामी हैं, संसारके उद्धारक हैं, कृपा-पारंगत हैं। अतः स्वामिन् , आप हमारी रक्षा करो। हमें संसारसे पार कर इन दारुण दुःखोंसे हमारा पिंड छुड़ाओ। इस प्रकार भक्तिभावसे प्रभुकी स्तुति कर उन्हें बड़ा आनंद हुआ । उन्होंने खूब पुण्य-कर्मका वध किया।
इसके बाद वे पुण्यात्मा वहाँ बैठे ही थे कि इतनेमें वहीं सखी-सहेलियोसहित प्रभुकी-वन्दना करनेके लिए कमला भी आ गई। उसके नेत्र-कमल खिल रहे थे और-' गलेमें मनोहर हार पड़ा था। वह अपने विछुओंके शब्दोंके द्वारा कोयलोंके कंठोंको लज्जित करती थी। उसके नितम्ब बड़े भारी. भारवाले थे, अतः वह स्खलित चालसे चलती हुई अपनी मंद गतिसे हथिनीकी गतिको जीतती थी। उसकी कमर करधौनीसे सुशोभित थी । वहाँ आकर वह जिनभवनके भीतर गई । वहाँ जाकर उस सुखिनीने जैसी विधिसे चाहिए प्रभुकी भक्तिभावसे वन्दना की और बाद उसने सुगन्धित चन्दनके द्वारा जिस पर कि भौरे गूंज रहे थे, प्रभुके चरण कमलोंकी पूजा की; उनके चरण-कमलोंमें मंदार, मल्लिका केतकी, कुंद, कमल, चंपक आदिके उत्तम उत्तम सुगन्धित पुष्प चढ़ाये; उसने सब दिशाओंको सुगन्ध-मय कर देनेवाली धूपको आगमें खेकर अपने कर्म-जालको जलाया