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चौदहवाँ अध्याय।
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चौदहवाँ अध्याय।
उन चन्द्रप्रभ भगवानको प्रणाम है जो गुणों के भंडार हैं, जिनके चरणों में
चन्द्रमाका चिन्ह है, जिनके शरीरकी ममा चन्द्रमाकी प्रभाके समान है, जो चन्द्र द्वारा पूजे जाते हैं, और जिनकी चन्दन आदि उत्तम द्रव्योंके द्वारा पूजा होती है । वे हमें शान्ति दें; हमारे कर्म-फलंकको दूर करें।
इसके बाद उन तेजस्वी पांडवोंने ब्राह्मणका रूप बनाया और कुन्तीकी गनिके अनुसार धीरे धीरे चल कर वे लोग कौशिकपुरीमें आये । कौशिकपुरी सब नरह शोभासे युक्त थी। उसमें जो उत्तम उत्तम विशाल महल बने हुए थे वे स्वर्गमे च्युत होकर वहाँ आये हुए विमानसे देख पड़ते थे। उनकी सुन्दरता स्वर्गके विमानों जैसी थी । उस नगरीका कोट बहुत ऊँचा था । अतः जान पड़ता था कि मानों उसने पृथ्वीका आधार पाकर इस कोटके बहानेसे आकाशमें निराधार ठहरे हुए स्वर्गीको जीतने के लिए ही जानेका इरादा किया है ।
___ उसके स्वामीका नाम वर्ण था । वर्ण राजा श्रीमान् था, सुमति था, शास्त्रका ज्ञाता और उत्तम वर्णका था । उसका रूप-सौदर्य वर्णनातीत था-उसका कोई वर्णन ही नहीं कर सकता था । उसकी रानीका नाम प्रभाकरी था । वह भी अपने पति के जैसी ही थी । अन एन वर्ण उस पर खूब ही प्यार करता था । उसके शरीरकी कान्ति सव ओर फैल रही थी, जिससे उसकी खूब शोमा हो रही थी। उसका मुंह चॉदके जैसा था, अतः उसकी ज्योत्स्नाके मारे कौशिकपुरीमें कभी किसी जगह अँधेरेको जगह न मिलती थी; सब जगह हमेशा ही प्रकाश रहता था । वर्ण और प्रभाकरीके एक पुत्री थी। उसका नाम था कमला । कमलाका रूप कमला (लक्ष्मी) के जैसा ही था । वह रूप-सौन्दर्यकी सीमा थी। उसके नेत्र बहुत ही सुहावने थे, उन्हें देखनेवालेकी तृप्ति ही नहीं होती थी। वह गणोंकी समुद्र थी। उसका शरीर तेज-शाली था । अतः वह तेजकी दूसरी मूर्ति सी देख पड़ती थी।
एक दिन उस मुग्धाके मानसमें वनक्रीडाकी उत्कंठा हुई और वह अपनी सखी-सहेलियोंको साथ लेकर निर्मल, श्रीयुक्त, उत्तम वृक्षोंवाले और चंपक आदि भाँति भॉतिके फूलोंसे सुंदर प्रमद नाम उद्यानमें गई और वहाँ जाकर उसने