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पाण्डव-पुराण। mwermenimmornaraan पांडव और प्रसन्न-मुख कुन्ती सब वहीं ठहर गये । भीमने जाकर उन सबके चरणोंको नमस्कार किया और बड़ी भारी उत्कंठाके साथ गले लग कर उन सवका आलिंगन किया। इसके बाद उससे युधिष्ठिरने पूछा कि भाई, तुम इतनी गहरी अथाह गंगाको हाथोंसे कैसे तैर आये और तुमने हाथोंसे ही उस दुष्ट तुंडिकाको कैसे जीता । इसके उत्तरमें भीमने कहा कि पूज्यवर, मैं आपके पुण्यके प्रभावसे ही हाथोंके प्रहारसे तुंडिकाको हरा कर गंगाको तैर कर यहाँ आया हूँ।
इस प्रकार अथाह गंगाको तैर कर, तुंडी देवीको जीत कर तथा शत्रुओं पर विजय लाभ कर वे जयशील पांडव परस्परमें खूब ही आनन्दित हुए। ___ भव्यजीवो, देखो, यह सब धर्मका ही प्रभाव है । और है भी ऐसा ही कि यदि धर्मका समागम हो तो जीवोंको भला क्या क्या सम्पत्ति नहीं मिल सकती-धर्मात्माओंको सव सम्पदायें अपने आप खोज कर उनकी सेवामें उपस्थित हो जाती है । तात्पर्य यह कि धर्मके प्रभावसे जीवोंको सब कुछ मिल जाता हैकुछ भी दुर्लभ नहीं रह जाता।
जिसे धर्मसे प्रेम होता है वही संसारमें सुख पाना है, वही मोक्षके लिए प्रयत्न कर सकता है और वही अपने शरीरकी प्रभासे अँधेरेको दूर करता है अर्थात् देवतों जैसे सुन्दर तेजशाली शरीरको पाता है । उसकी देव रक्षा करते हैं, जिसका कि धर्म सहायक होता है । उसीको धन-समृद्धि मिलती है और वही उत्तम उत्तम पुरुषों द्वारा पूजा जाता है।