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________________ तेरहवाँ अध्याय । '२११ www ANYUvuvwwvwwwwwwwwwwww कर निर्भय भीमने देवीसे कहा कि “देवि, लो मेरी वलि लो, मुझे ग्रहण करो"। इसके बाद वह गंगाके अथाह जलमें कूद पड़ा । उसे सचमुच ही कूदा हुआ देख कर युधिष्ठिर आदि रोने लगे और कुन्ती भी हाहाकार करती हुई विलाप करने लगी। हा भीम, हा महाभाग, हा पराक्रमशाली भुजाओंवाले, हा परोपकारपारीण और हा शत्रुपक्षके विध्वंसक भीम, तुमने हमारे लिए सारा जगत सुना कर दिया । तुम्हारे विना हमें यह सारा जगत सूना देख पडता है । तुम्हारे बिना हमारा मन विचार-विमूढ हो गया है । कहो अब हम इस दुःख-रूपी सागरको तुम्हारे चिना कैसे पार करेंगे । उधर भीम ज्यों ही गंगामें कूदा कि देवताने नौकाको छोड़ दिया । फिर क्या था थोड़ी ही देरमें नौका पार पहुंच गई और शोकसागरमें डूबे हुए दुःखी चार पांडव भी कुन्तीसहित गंगाके पार पहुंच गये । परन्तु वे भीमके वियोगसे बड़े दुःखी थे। अत एव वे विचक्षण वार वार भीमकी ओर देख रहे थे । इस समय महान दुःखसे उनका हृदय जला जा रहा था । भीमके गुणोंका स्मरण कर उनकी ऑखोंमें ऑसू भर आते थे। परन्तु दैव-वश वे कर कुछ नहीं सकते थे। आखिर नौकामेसे उतर कर उन्होंने अपना रास्ता लिया। महान् भयंकर भीमके गंगामें कूदते ही तुंडी मगरका रूप कर उसकी ओर दौड़ी । उसको अपनी ओर आती हुई देख कर भीमको चडा भारी क्रोध आया । वह जल पर तैरता हुआ उसके साथ युद्ध करने लगा । भीमका और तुंडीका आपसमें पैरोंके आघातों द्वारा खूब ही युद्ध हुभा । जान पड़ता था कि मानों जलके ऊपर रोषके भरे दो निष्ठुर मल्ल ही लड़ रहे है । इस समय अखंड और प्रचंडात्मा भीमने पावोंके प्रहार द्वारा तुंडिकाको अधमरा कर दिया, जिससे वह बड़ी क्रुद्ध हुई और उसने भीमको एकदम ही निगल लिया । तब भीमके भी क्रोधकी सीमा ही न रही और उस वीरने अपने हाथके वज्र जैसे महारके द्वारा उसका पेट ही फाड़ डाला तथा उसकी पीठकी हड्डीको जो कि खूब ही मजबूत और वज्रके जैसी थी, उखाड़ कर फेंक दिया और आप आरामके साथ उसके पेटसे बाहिर निकल आया । देवी भीमकी भयानक मारसे अत्यन्त विह्वल हो गई । उससे जब कुछ भी न वन पड़ा तब वह गंगाके उस मार्गको छोड़ कर उसी समय भाग गई । इस प्रकार-उसे पराजित कर भीय हाथोंसे गंगाको तैर कर आ गया । उसे आता हुआ देख कर, लौट लौट कर पीछे की ओर देख रहे स्थिरव्रत युधिष्ठिर आदि
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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