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mmamamarama
तेरहवाँ अध्याय । न्यायके जानकार और प्रवीण हो, धर्म और अधर्मका अन्तर समझते हो तथा लोक-व्यवहार और लोकनीतिको भी जानते हो और मेरा तो यह विश्वास है कि तुम्हारे समान लोकमें न तो कोई विजयी है और न चतुर ही । तुम अद्वितीय पराक्रमी हो । अतः हे भाई तुम युक्ति-युक्त विचारपूर्ण बात कहो और वैसा ही उपाय भी करो।
- इसके बाद विशिष्टात्मा और हितैषी युधिष्ठिरने भयको दूर करनेके लिए मन-ही-मन यह भव्य विचार किया कि भीमने जो प्यारे भाइयोंको तथा पूज्या जननीको मारनेके लिए कहा वह तो ठीक नहीं है, किन्तु इस समय मुझे स्वयं अपनी ही बलि दे डालना कहीं अधिक उचित है । यह सोच कर वह पवित्रामा स्वयं अपनी बलि देने के लिए तैयार हुआ । उसने अपने भाइयोंको कहा कि भाइयो, तुम लोग हमेशा भक्ति और मानके साथ माताकी सेवा करना । देखो, माताकी सेवासे सब मनोरथ सिद्ध होते हैं और मनचाही सम्पत्ति मिलती है। अत: तुम कभी माताकी सेवासे विमुख न होना । तथा परोपकारसे तुम हमेशा लोगोंको प्रसन्न रखना । देखो, जो परोपकारी होते हैं, परोपकार करते है वे संसारके सिरताज बन जाते हैं। तुम लोग कभी कौरवोंका विश्वास नहीं करना; क्योंकि वे सब बड़े विश्वासघाती है, दूसरोंके मनोरथों बाधा डालनेवाले हैं। अधिक क्या कहें व आशीविष सॉपके समान हैं। उन पर विश्वास करनेसे तुम्हें कभी सुख नहीं हो सकेगा । किन्तु इसके विपरीत मौका पाकर तुम कौरवोंके वंशका विध्वंस करके अपने अद्भुत पराक्रमसे सारे देश पर अधिकार जमाना और सुख-पूर्वक रहना। युधिष्ठिरने सुशिक्षित और दक्ष भीम आदिको इस तरह खूव समझाया।
इसके बाद वह गीले वस्त्रसे शरीरको साफ कर, मनके मैलको धोकर ध्यानमें 'स्थिर हो गये और पंच परमेष्ठीका नाम जपने लगे । इस समय उनके मनमें राग-द्वेषको बिल्कुल ही जगह न थी, अतः शत्रुमित्र, भाई-बन्धु सब पर उनका एक सा भाव हो गया था । वह शरीरसे भिन्न आत्माकी भावना करते थे तथा इच्छाओंके जालको तोड कर निरीह हो गये थे । वह संसारको विनश्वर और परम पदको नित्य-रूपमें देखते थे। और इसी कारण वह दो प्रकारका संन्यास धारण करके निर्भय हो गये थे। इसके बाद उन शुद्धमनाने अपने सब भाइयोको क्षमा कर उनसे क्षमा करवाई
पाण्डव-पुराण २५