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________________ २०८ पाण्डव-पुराण | है ! ओह, दया बिना जीते रहनेको धिक्कार है। जिसके हृदयमें दया नहीं उसका जीना व्यर्थ है; किसी भी कामका नहीं । हे निर्दय और हे भयंकर विचारको हृदयमें जगह देनेवाले भीम, ऐसा वचन भूल कर भी कभी अपनी जीभ पर न लाना, जिसमें कि दया न हो । भाई, तुम्हें हमेशा दयापूर्ण वचनोंका ही व्यवहार करना चाहिए | क्या दयासे सने हुए अच्छे वचनोंकी कमी है । यदि नहीं है तो फिर निर्दय वचनोंका प्रयोग ही क्यों करते हो । मेरे विचक्षण भाई, कोई अच्छा उपाय बताओ जो सुखकर हो । यह सुन कर चतुर भीम बोला कि देव, यदि आपको मेरी यह बात भी नहीं रुची तो आप देवीको तृप्त करनेके लिए समर्थ अर्जुनको भेंटमें दे दीजिए, ताकि देवी कोई विघ्न न उपस्थित करे । भीमके इन वचनों को सुनते ही युधिष्ठिरका मस्तक घूम गया और वह सम्पूर्ण बातों को समझनेवाला दया-मय बोला कि गंभीराशय भाई भीम, तुम यह क्या निंद्य वचन कहते हो। इससे तो हमारी सर्व सुख-शान्ति धूलमें मिल जायगी । देखो तो भला, यह पार्थ कितना तेजस्वी है । इसको सव राजा महारांजा जानते और मानते हैं । इसे कोई वैरी नहीं जीत सकता । यह अजय्य और धनुर्वेद - विशारद है । इसके जीते रहनेसे तो कभी अपना राज्य वापिस फिर भी अपने हाथ आ जायगा । क्या तुम नहीं जानते कि यह वालकाल से ही प्रचंड वलशाली भुजाओंवाला है और शत्रुओंका शत्रु है । उनको कालके गाल में पहुँचा देने के लिए समर्थ है । यह शब्दवेधमें अतीव प्रवीण पण्डित है, अच्छा धनुर्धर हैं, धर्मात्मा और धीरवीर है । इस लिए यह कभी मार डालने के योग्य नहीं है; अतः इसे नहीं मारना चाहिए | यह सुन भीम बोला कि अच्छी बात है आप किसी को भी नहीं मारना चाहते तो कमलकी नाँई कोमल माता कुन्तीको ही देवीकी भेंट कर दो, जिससे और सर्व पांडव आपत्तिसे छुटकारा पालें । इसके उत्तरमें युधिष्ठिरने कहा कि मेरे भाई भीम, ऐसा मत कहो । देखो, यह अपनी जननी है, जन्म देनेवाली है, अत एव सदा ही पूजे जाने योग्य है। दयालु है, दयाकी मूर्ति है और सब लोग इसे मानते हैं। भाई, विचारो तो इसने हमें नौ महीने अपने गर्भाशयमें रक्खा है और फिर जन्म देकर बड़े भारी कष्टों से हमें पाला-पोषा है । अतः जो सुखी होना चाहते हैं उन्हें संसार भर द्वारा मान्य जननीको मारना कभी भी उचित नहीं है । देखो, संसारके प्रसिद्ध पुरुषोंने तो जननीको तीर्थ बताया है और हम उसे मार डालें, यह कहाँ तक योग्य और न्याय्य बात है । भाई भीम, तुम तो दया के सागर हो; -
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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