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पाण्डव-पुराण। भी जल्दी करो । नहीं तो अभी थोड़ी ही देर में हम लोगोंका सर्व-नाश हो जाना संभव है । मैं बहुत विचार करता हूँ, पर मेरी समझमें कुछ भी उपाय नहीं आता । सच है कि चिंतासे बुद्धि नष्ट-भ्रष्ट हो जाती है । इस पर निर्भय भीमने कहा कि पूज्यपाद, अवसर देख कर ही बुद्धिमानोंको काम करना उचित है। देखिए इस सम्बन्धमें मैंने एक निर्दोष उपाय सोचा है और उसमें कोई आपत्ति भी नहीं है । हाँ, उससे मेरी कीर्ति अवश्य होगी । महाराज, इस उपायसे न तो अपयश होगा और न अपमान ही । एवं निंदा और हानि भी इस उपायके करनेसे न होगी । इस लिए इसे कार्य-सिद्धिके लिए आप जल्दी कीजिए। वह उपाय यह है कि यह धीवर जरा-ज्वरका प्रेरा हुआ है, वदसूरत और दरिद्र है, दुःखी है, निर्दय है; अतः इसीको मार कर और देवीको बलिसे तुष्ट कर आगे चलिए। रही नौका चलानेकी बात सो आप इसका बिल्कुल ही भय मन करिए । मुझे भरोसा है कि हम लोग अनायास ही नौकाको चला लेजा कर पार पहुँच जायेंगे | भीमके इन भयानक वचनोंको सुन कर विचारा धीवर तो कॉपने लग गया-उनके होश-हवाश उड़ गये उसका हृदय मानों करोतसे चीर सा दिया गया हो। उसके चेहरेकी सब कान्ति नष्ट हो गई । तात्पर्य यह कि उसे अपने प्राणोंके लाले पड़ गये । वह कहने लगा कि धीमान्, शुद्ध हृदयवाले नृपेन्द्र, मेरे मारे जाने और न मारे जानेसे तो कुछ भी हानि न होगी। परन्तु इतनी बात अवश्य होगी कि मेरे मर जाने पर आपको पार कोई नहीं पहुँचावेगा । मेरे बिना आपकी इस गंगामें ही स्थिति होगी । और इस लोकापवादसे आपकी बड़ी भारी अपकीर्ति भी होगी कि देखो राजाने पार उतारनेवाले बेचारे गरीब धीवरको भी मार डाला-भला करते बुरा कर दिखाया। राजन्, यदि आपको जीवन भर गंगामें ही रहना अच्छा लगता हो, तो भले ही अपने विचार माफिक काम कीजिए । मुझे मार कर देवीको तृप्त कीजिए । परन्तु ध्यान रखिए कि ऐसा करनेसे फिर हमारे कुलके लोग कभी भी आप लोगोंको इस गंगाके पार न पहुँचायेंगे । भला, आप ही सोचिए कि क्या एक वार धोखा खाया पुरुष फिर उसी मार्गको जाता है ?
. धीवरकी इन बातोंको सुन कर दयालु युधिष्ठिरने भीमसे कहा कि भाई, इतने चतुर होकर भी तुम यह क्या कहते हो । तुम्हारे इन वचनोंको सुन कर हम लोगोंका तो दिल दहल गया; जिस तरह कि यमका नाम सुनते ही कर्मका रचा हुआ कोमल शरीर दहल जाता है । तुम्हें ऐसी