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तेरहवाँ अध्याय ।
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वे कुन्तीकी गतिके अनुसार ही धीरे धीरे चलते थे । वे निर्मल हृदयवाले तथा तत्ववेदी उसके थक जाने पर जब वह खड़ी हो जाती तब आप भी खड़े हो जाते और जब वह चैठ जाती तब आप भी बैठ जाते ।
इस प्रकार धीरे धीरे चलते हुए वे कुछ कालमें गंगा नदीके पास पहुँच गये । गंगा अथाह जलसे भरी हुई थी और अनन्त लहरोंसे लहरा रही थी । उसका प्रवाह मंद और बड़ी गंभीरतासे बह रहा था । उसके किनारे पर कल्प-क्षके समान ऊँची ऊंची शाखाओंवाले और विशाल सालक्ष थे। वे खूब ही फले-फूले हुए थे । अत: उनसे उसकी बड़ी शोभा हो रही थी। वह स्त्रीके तुल्य जान पड़ती थी। स्त्रीके नामि होती है, उसके भी भेवर-रूप नाभि थी । स्त्रीके वाहु होते है, उसके कल्लोल-रूप वाहु थे । स्त्रीके कृय होते है, उसके भी बड़े बड़े पत्थर-रूप कुच थे । स्त्री पॉच होते हैं, गंगाके दोनों तट ही पाँव थे। स्त्रीके नितम्ब होते हैं, उसके भी नजदीकके पहाड़-रूप नितम्ब थे । स्त्री मंद मंद चलती है, और वह भी मंद मंद वहती थी । स्त्रीके वक्षास्थल होता है, उसके महाहद-रूप क्षास्थल था । स्त्रीके नेत्र होते हैं, उसके भी कमल-रूप नेत्र थे। स्त्री जड़-मूर्ख-होती है, वह भी जड़-जल-युक्त--थी । स्त्री अपने कपोलआदि पर बनाये हुए मीन, केतु वगैरह चिह्नोंसे युक्त होती है, उसमें भी मीन, केतु वगैरह थे । स्त्री इसके जैसी चाल चलती है अर्थात् हंसगामिनी होती है वह भी हंसगामिनी थी--उसमें इस विचरा करते थे । स्त्री मधुर वचन बोलती है, वह भी पक्षियोंके कलरव शब्द द्वारा मधुर शब्द कर रही थी । तात्पर्य यह कि वह स्त्रीसे किसी भी वातमें कम न थी।
उसको अथाह और पार होनेके लिए विषम देख कर, पांडव असमर्थ हो उसके किनारे पर ठहर गये और पार पहुंचा देनेके लिए एक धीवरको बुला कर उससे बोले कि भाई, तुम अति शीघ्र अपनी नौका ले आओ और हमें गंगा पार कर दो; . परन्तु ध्यान रखना कि नौका ऐसी हो जिसके द्वारा हम सकुशल और जल्दीसे पार पहुंच जायें । उनके वचनोंको सुन कर वह धीवर उसी समय अपनी नौका ले आया। नौका छिद्र रहित थी और पानी पर तैरती हुई तैरनेके उपायको बताती थी। पांडव कुन्ती-सहित नौकामें सवार हो, अथाह गंगाके भीतर चले। कुन्ती भयसे कभी कभी उन लोगोंका हाथ पकड़ लेती थी, उसे बहुत भय मालूम पड़ता था। पांडव निडर थे। थोड़े ही समयमें उठती हुई कल्लालों ( तरंगों) के सहारे सीधी