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पाण्डव-पुराण।
कृष्णके इन वचनोंको सुन कर सम्पूर्ण वातोंका ज्ञाता एक वाग्मी बोला कि नृपेन्द्र, यह सब तो ठीक है; परंतु नीति यह है कि छिद्र पाकर ही वैरियों के साथ छल करना चाहिए । देखिए खाली घड़ीके छिद्रको पाकर ही उसके छिद्र द्वारा उसमें र जल भर जाता है । विना छिद्र पाये वैरी अतीव कप्ट-साध्य होते है । वे देवों के द्वारा भी पराजित नहीं किये जा सकते । कहिए क्या छेदके विना भी कहीं सूतमें मोती पोये जा सकते हैं । देखिए, इस समय कौरव-गण भारी अभिमानसे भर रहे हैं, उनके पास खासी विजयी उत्तम सेना है। उन्हें अपने शारीरिक बलका भी बड़ा भारी मद है। विशेष कर उन्हें अपने घोड़े, हाथियों आदिका बहुत घमंड है । अत: जिस तरह मदिरा पीनेवाले मनुष्य जल्दी किसीको दवते नहीं हैं उसी तरह वे मतवाले भी वैरीको वल-रहित जान कर विल्कुल नहीं दवंगे-आपका कुछ भी भय न मानेंगे । इतने पर भी कौरवोंको जरासंधका सहारा है। इस लिए ये और भी उद्धत हो रहे हैं। जिस तरह कि नागदमनी (सर्पका जहर उतारनेवाली जड़ी ) के सहारेको पाकर मेंड़क सॉपके सिर पर नाचने लगते हैं। आज कल वे जरासंघके सहारेसे राजों महाराजों द्वारा उसी तरह पुन रहे है जिस तरह कि उत्तमांग ( मस्तक ) का आश्रय पाकरके केश-राशि पुजती है । अतः बुद्धिसागर और पवित्रात्मन् , आपको इस समय कौरवोंके साथ युद्ध करनेको जाना उचित नहीं जान पड़ता है। कौन नहीं जानता कि धीरे धीरे ही सब काम अच्छे बनते हैं। आप अभी कुछ दिन ठहर जाइए | वाद जव जरासंधके साथ आपका युद्ध होगा तब आप बड़ी आसानीसे ही इनका निग्रह कर सकेंगे; और इसीमें आपका हित है। यदि आप हठ कर इसी समय ही कौरवोंके साथ युद्ध ठानेंगे तो जरासंध भी क्रोधित होकर युद्धके लिए उठ खड़ा होगा तब यह कार्य सोते हुए सिंहको जगानेके जैसा ही होगा। इस लिए स्थिर-चित्त
और धैर्यशाली कृष्ण, आप अभी धीरज धरें। बाद जब समय आवेगा तब मैं स्वयं ही उन सबका विध्वंस कर दिखाऊँगा । इस तरह उस विद्वान्के समझाने पर यादव लोग युद्ध करनेसे रुक गये । क्योंकि वे वैरीकी विक्रियाको जानते थे, व्यवहारके जानकार और स्थिर-चित्त एवं धैर्यशाली थे। ' उधर पांडव भेष बदल कर भस्मसे ढकी हुई आगकी नॉई छुपे हुए वहॉसे पूर्व दिशाकी ओर चले आये । वे बड़े तेजस्वी थे, उनकी भुजायें हाथीकी सूड़के जैसी खून मजबूत थी। उनके पराक्रमसे दशों दिशायें व्याप्त हो रही थीं। उनका विक्रम चक्रवर्तीके जैसा था। उनके साथमें उनकी माता कुन्ती थी, अत: