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पाण्डव-पुराण । गई। उन्होंने सोचा कि नीच काम करनेवाले पापात्मा कौरवोंने ही यह शिष्टोंके विरुद्ध अनिष्ट काम किया है। औरोंसे ऐसा अनिष्ट होना असम्भव नहीं तो असाध्य अवश्य है । द्रोणसे रहा न गया और उस निर्भयने कौरव-राजोंसे खुल्लमखुल्ला कहा कि आप लोगोंको इस तरहसे अपने कुटुम्वका विनाश कर देना उचित न था । परन्तु, दुष्ट-चित्त खल पुरुपोंका स्वभाव ही ऐसा होता है कि वे सजनों । को भी दुर्जन बना देते हैं, जैसे कि तूमड़ीका रस मीठीसे मीठी चीजको भी कडुवा बना देता है । द्रोणके इस तिरस्कारसे कौरवोंने अपना सिर नीचा कर लिया; वे बहुत ही लज्जित हुए । फिर ऊँचा मुँह करनेका भी उनका साहस न हुआ। सच तो यह है कि कहीं निर्दय पुरुषोंके भी लाज और धर्म-वुद्धि हो सकती है । इस वक्त चारों ओरसे नगरके लोग आ गये और उन्होंने महलकी आग बुझाई । शोकसे पीड़ित हुए पुरुष क्या कठिन काम नहीं करते; किन्तु जव जैसा मौका आता है तब वैसा ही उन्हें करना पड़ता है । क्योंकि शोक करके बैठ जानेसे भी तो काम नहीं चलता । वे आग बुझानेवाले उन मुदीको देख कर वोले कि देखो ये पांडवोंके मुंदै शरीर पड़े हुए हैं। उस समय उन मुदीको देख कर कोई शोकातुर वोला कि यही थिर-चित्त युधिष्ठिर हैं, यह महाबली भीम - हैं, यह सरल-चित्त अर्जुन हैं और यह निर्मल नकुल तथा देवतों द्वारा सेव्य और पवित्र हृदयवाले सहदेव हैं । और यह सकुमार अंग तथा सुंदर वालोवाली अवला इनकी जननी कुन्तीका मुर्दा शरीर पड़ा है। देखो, यह सती कितनी निर्मल
और विशाल हृदयवाली थी । एवं दे सव विदग्ध पुरुष, अधे-जले मांसके पिंडसमान उन मुदोको देख कर उनके जैसे ही अध-जले हो गये-उन्हें बड़ा भारी शोक हुआ।वे लौट लौट कर उन मुदौको देखने लगे और बड़ी देर तक देखभाल कर उन्होंने यही निश्चय किया कि पांडव ही जल गये हैं। और इस निश्चयके अनुसार ही शोकके मारे उन लोगोंने उस दिन खाना, पीना और अपना व्यापार धंधा भी बन्द कर दिया । सब लोग दुःखसे व्याकुल हुए बैठे रहे। अधिक क्या कहें उस दिन शोकके मारे क्या पुरुष, क्या स्त्रियाँ, क्या वाल-बच्चेयहाँ तक कि पशु पक्षी तक-सबकी हाय हायकी ध्वनिसे सारा शहर गूंज रहा , था। भावार्थ यह कि उस-दिनका दृश्य शोकका बड़ा भारी भयंकर दृश्य था, जो हृदयको विदार कर टुकड़े करनेवाले वज्र-प्रहारके जैसा था। - उधर पांडवोंकी मृत्युः सुन धृतराष्ट्रकी रानी गांधारीको बड़ा भारी,